The capital is moving towards a plastic free city… 12 tonnes of polythene used to come to the mine two and a half years ago, now only 8 tonnes
- पर्यावरण से दोस्ती शॉपिंग मॉल, रेस्त्रां और अन्य स्टोर्स कर रहे कंपोस्टेबल बैग का इस्तेमाल
भोपाल । राजधानी के बाजारों से धीरे-धीरे पॉलीथिन कम होने लगी है। इनकी जगह कंपोस्टेबल बैग ले रहे हैं। असर भी दिखने लगा है। ढाई साल पहले शहर से निकलने वाले कचरे में 12 टन पॉलीथिन रहती थी। मौजूदा समय में आदमपुर खंती पर रोजाना लगभग 8 टन ही पॉलीथिन पहुंच रही है। कंपोस्टेबल बैग का सबसे ज्यादा इस्तेमाल रेस्त्रां, शॉपिंग मॉल और डिपार्टमेंटल स्टोर्स में हो रहा है। शहर में रोज करीब डेढ़ टन कंपोस्टेबल बैग की खपत होती है।
भुट्टे के स्टार्च यानी माड़ को प्रोसेस करके कंपोस्टेबल बैग बनाए जाते हैं। यदि जानवर इन्हें खा लें तो उनको भी नुकसान नहीं होता है। यह पॉलीथीन से होने वाले प्रदूषण के मुकाबले हानिकारक नहीं है। ये अधिकतम 6 महीने में मिट्टी में घुल जाते हैं। भुट्टे की माड़ से बनने के कारण ये रिन्युएबल होते हैं, यानी इनका उत्पादन दोबारा से किया जा सकता है।
बायोडिग्रेडेबल से थोड़े अलग हैं कंपोस्टेबल बैग … एक्सपर्ट्स का कहना है कि बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से कंपोस्टेबल बैग थोड़े अलग होते हैं। कंपोस्टेबल बैग जल्द मिट्टी में घुल जाते हैं जबकि बायोडिग्रेडेबल को 6 महीने से ज्यादा का समय लगता है। हालांकि दोनों पर्यावरण हितैषी होते हैं।
फायदा- पॉलीथिन से सस्ता
किलो के हिसाब से देखें तो कंपोस्टेबल बैग पॉलीथिन के मुकाबले 20 रुपए तक सस्ता है। यह प्रति किलो 130 रुपए में मिलता है, वहीं, पॉलीथिन 150 रुपए प्रतिकिलो तक है। एक किलोग्राम कंपोस्टेबल बैग में करीब 200 पीस आते हैं। फिलहाल भोपाल में कंपोस्टेबल बैग बनाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से दो प्लांट को लाइसेंस दिया गया है। इसके अलावा बाहर से भी शहर में कंपोस्टेबल बैग आ रहे हैं।
पॉलीथिन में 30% कमी, कपड़े के बैग भी बढ़ रहे
पॉलीथिन के इस्तेमाल में करीब 30% कमी देखने को मिली है। मॉल्स और डिपार्टमेंटल स्टोर के अलावा कई दुकानदार भी कंपोस्टेबल बैग में सामान दे रहे हैं। 30% ग्राहक कपड़े या जूट का थैला लेकर बाजार पहुंच रहे हैं। पॉलीथिन के उपयोग में कमी का एक यह भी बड़ा कारण है। देवेंद्र सिंह चौहान, एडीसी नगर निगम

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