The excise department’s recovery officer became a ‘criminal’, revealed in ED investigation
भोपाल ! मध्य प्रदेश के आबकारी विभाग में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच में पता चला है कि जिस अधिकारी ने 2015 के 38 करोड़ रुपये के फर्जी चालान घोटाले में से 23 करोड़ रुपये की वसूली विभाग को कराई थी, उसी को विभाग ने ‘अपराधी’ घोषित कर दिया है। वहीं, पिछले 10 सालों में विभाग का कोई अन्य अधिकारी 23 रुपये भी वसूल नहीं कर सका है.
साल 2015 में उजागर हुए फर्जी चालान घोटाले में शराब ठेकेदार बैंक और ट्रेजरी के साथ-साथ विभाग को 10 हजार रुपये का चालान जमा करते थे, लेकिन उसमें दो-तीन शून्य बढ़ाकर लाखों रुपये दिखाते थे। इस गोरखधंधे में बैंककर्मी, आबकारी विभाग के बाबू और ट्रेजरी अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई थी.
तत्कालीन आबकारी अधिकारी संजीव दुबे ने इस घोटाले का खुलासा करते हुए 11 ठेकेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी और उनसे 23 करोड़ रुपये की वसूली कर सरकारी खजाने में जमा कराए थे। लेकिन अब उसी अधिकारी को विभाग ने दोषी ठहराते हुए इंदौर से हटाकर मुख्यालय में अटैच कर दिया है। जबकि इस दौरान पदस्थ रहे अन्य अकाउंटेंट, एडीओ सहित कई अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी गई है.
ईडी की हालिया छापेमारी में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। जांच एजेंसी को बड़ी संख्या में शराब ठेकेदारों द्वारा नकद रकम जमा कराने के सबूत मिले हैं। इस पूरे मामले में कई आबकारी अधिकारियों और शराब ठेकेदारों की संदिग्ध भूमिका भी सामने आई है। दिलचस्प बात यह है कि जिस संजीव दुबे को विभाग ने दोषी माना, उसके खिलाफ ईडी को कोई भी सबूत नहीं मिला, क्योंकि उन्होंने तो घोटाले का पता चलने पर तुरंत वसूली कर विभाग के खाते में जमा कराई थी। वहीं, इंदौर में लंबे समय तक पदस्थ रहे अन्य कई अधिकारी विभाग के खाते में एक रुपया भी जमा नहीं करा सके, जिससे शराब ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच सांठगांठ की आशंका गहरा गई है.

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