वॉशिंगटन
अमेरिका ने भारत को हॉकआई 360 की बिक्री को मंजूरी दे दी है। इस डील में रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सेंसर, एनालिटिक्स सॉफ्टवेयर, सिस्टम इंटीग्रेशन सपोर्ट और ट्रेनिंग मॉड्यूल शामिल हैं। इसकी कुल कीमत 131 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। इससे भारत को अपनी समुद्री निगरानी क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी। खासतौर से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में हॉकआई 360 से भारत को रियल-टाइम समुद्री निगरानी करने में आसानी हो जाएगी। ये समुद्री सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए एक अहम डील है। इसकी अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि इंडो-पैसिफिक में चीन ने अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर है, जो भारत के लिए चिंता का सबब रहा है।
हॉकआई 360 छोटे-छोटे सैटेलाइट्स का एक समूह है। ये सैटेलाइट्स पृथ्वी की निचली कक्षा में घूमते हैं और रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) को ट्रैक करते हुए उनकी जगह बताते हैं। ये सैटेलाइट समूह जहाजों, विमानों, वाहनों और तटीय प्रणालियों (कोस्टल सिस्टम) से आने वाले संचार संकेतों को ट्रैक करते हैं। हॉकआई 360 सैटेलाइट उस जहाज के रेडियो फ्रीक्वेंसी एमिशन को भी पकड़ता है, जिसने अपने ट्रांसपोंडर को बंद कर रखा है।
भारत के लिए कैसे होगा मददगार
भारत को हॉकआई 360 सिस्टम भारत को बड़े समुद्री क्षेत्रों, खासतौर से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रियल-टाइम निगरानी करने में मदद करेगा। इससे समुद्री अभियानों में जागरूकता और किसी घटना पर प्रतिक्रिया देना आसान होगा। इस सिस्टम की सबसे खास बात ये है कि यह उन जहाजों का भी पता लगा सकता है, जो AIS को बंद कर देते हैं ताकि उन्हें ट्रैक ना किया जा सके।
ये सिस्टम मिलने से इंडियन नेवी अवैध मछली पकड़ने और तस्करी जैसी गतिविधियों की पहचान कर सकेगी। इससे नेवी को तेजी से फैसले लेने और समुद्री क्षेत्र पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी। इंडियन नेवी को हॉकआई 360 की मदद से अपने एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन में बेहतर जानकारी मिल सकेगी। यह सिस्टम भारत को आपदा राहत और बचाव कार्यों में भी मदद करेगा। इससे संकट संकेतों का पता लगेगा और रेस्क्यू टीमे तेजी से पहुंच सकेंगी।
कैसे करता है काम
हॉकआई 360 एक बड़े ISR सिस्टम में RF लेयर के रूप में काम करता है। इस सिस्टम में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल (EO), इंफ्रारेड (IR) और सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) जैसी अतिरिक्त लेयर्स भी हैं। हर लेयर खतरों का पता लगाने, उनकी पुष्टि करने और क्लासीफाइड करने में मदद करती है। हॉकआई 360 की क्षमताओं को मल्टी-लेयर्ड सर्विलांस से बढ़ाया जा सकता है।
EO इमेजिंग RF-आधारित जहाजों की लोकेशन बताता है। EO सैटेलाइट दिन में हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरें लेते हैं। एनालिस्ट्स इन तस्वीरों का इस्तेमाल RF डिटेक्शन को देखने के लिए करते हैं। EO लेयर सबसे अच्छा काम दिन के उजाले में करती है। IR सेंसर जहाजों से निकलने वाली गर्मी का पता लगाते हैं। इंफ्रारेड सेंसर इंजन और एग्जॉस्ट से निकलने वाली गर्मी को पहचानते हैं। इससे रात में छिपकर जाते जहाजों को ट्रैक करने में मदद मिलती है। IR लेयर कम रोशनी में भी काम करती है।
SAR इमेजिंग बादलों और अंधेरे में भी देख सकता है। SAR सैटेलाइट्स हर मौसम में रडार-आधारित तस्वीरें लेते हैं। यह लेयर जहाज के आकार, गति और लोकेशन की पुष्टि करती है। SAR रात में या तूफान के दौरान भी महत्वपूर्ण जानकारी देता है। यह सिस्टम तेज और सटीक है, जो हर मौसम और हर समय काम करता है। एनालिस्ट्स RF इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके पूरी स्थिति का जायजा लिया जा सकता है।

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