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चालीस वर्षीय संतोष पिछले कुछ दिनों से इस बात से परेशान हैं कि बार-बार उनके चश्मे का नंबर बदल रहा है। साथ ही उन्हें अंधेरे में बहुत कम दिखाई देता है। उन्होंने तुरन्त डॉक्टर से सम्पर्क किया। विभिन्न परीक्षणों से इस बात की पुष्टि हुई कि उन्हें ग्लूकोमा है। डॉक्टर ने बताया चूंकि उनका रोग अभी पहले चरण में ही है इसलिए दवा से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
 
ग्लूकोमा या काला मोतिया आंखों की एक ऐसी बीमारी है जो किसी को भी हो सकती है। इस बीमारी के विषय में सबसे चिंताजनक बात यह है कि इससे ग्रस्त ज्यादातर लोग इस बात को नहीं जानते कि उन्हें ग्लूकोमा है क्योंकि इस बीमारी के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते इसलिए मरीज को तभी चल पाता है जबकि उसकी आंखों की दृष्टि क्षमता का ह्रास शुरू हो चुका होता है। इलाज शुरू होने के बाद भी नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती। सही इलाज के द्वारा केवल आगे होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है।
 
आक्वेयस हयमर एक तरल पदार्थ है जो हर वक्त हमारी आंखों में बहता रहता है। यह तरल पदार्थ हमारी आंखों के लैंस, आयरिस तथा कार्निया को पोषण देता है। इस तरल पदार्थ को प्रवाहित करने वाले नाजुक जाल में यदि कोई रुकावट आ जाती है या उसे सही जगह तक ले जाने वाली नस में कोई रुकावट उत्पन्न हो जाती है तो आईओपी अर्थात इंट्रा आक्सुलर प्रेशर (आंखों में दबाव) इतना बढ़ जाता है कि आप्टिक नर्व को रक्त पहुंचाने वाली रक्त वाहिनी को नुकसान पहुंचने लगता है। यदि इसका जल्द से जल्द इलाज न किया जाए तो आइओपी के कारण आप्टिक नर्व को बहुत नुकसान पहुंचता है जिस कारण दिमाग से आंखों का सम्पर्क खत्म हो जाता है और व्यक्ति पूरी तरह अंधा हो जाता है। आप्टिक नर्व में हुए नुकसान की पुनः भरपाई संभव नहीं होती।
 
ग्लूकोमा बहुत हद तक अनुवांशिक भी होता है। लघु दृष्टि दोष अर्थात् मायोपिया एवं मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को भी ग्लूकोमा होने की आशंका ज्यादा होती है। वे लोग जिनकी आंखों में आंतरिक दबाव असामान्य रूप से बहुत अधिक हों उन्हें भी यह बीमारी होने की पूरी-पूरी संभावना होती है। वे लोग जो लंबे समय से स्टीरायड या कोर्टिजोन का उपयोग कर रहे हों उन्हें भी ग्लूकोमा होने की संभावना होती है। आंखों में किसी प्रकार की चोट लगने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
 
समय रहते ग्लूकोमा को पकड़ने के लिए जरूरी है कि साल में कम से कम एक बार आंख की जांच जरूर करवा लेनी चाहिए। इसके कई ऐसे अप्रत्यक्ष लक्षण होते हैं जिन पर ध्यान दिया जाए तो ग्लूकोमा पर जल्दी नियंत्रण किया जा सकता है जैसे अंधेरे में कम दिखना, चश्मे का नबंर बार-बार बदलना या प्रकाश के चारों ओर इन्द्रधनुषी मंडल दिखना।
 
मरीज को ग्लूकोमा है यह जानने के बाद डॉक्टर कई प्रकार की जांचों के द्वारा ग्लूकोमा के प्रकार तथा उससे हुई दृष्टि क्षमता की क्षति का पता लगाते हैं। टोनोमेट्री टैस्ट आंखों में इंट्रा आक्युलर प्रेशर जांचने के लिए किया जाता है। आप्थल्मोस्कोपी टैस्ट आप्टिक नर्व में होने वाली हानि को जांचने के लिए किया जाता है। प्रत्येक आंख की दृष्टि क्षेत्र का परीक्षण करने के लिए पेरिमेट्री टैस्ट किया जाता है। एक अन्य टैस्ट गोनियोस्कोपी के द्वारा आंखों के ड्रेनेज एंगल का निरीक्षण किया जाता है।
 
ग्लूकोमा के इलाज के लिए दवाई, लेजर तथा सर्जरी का सहारा लिया जाता है। यदि प्रारंभिक अवस्था में ही इसका पता लग जाए तो दवाई द्वारा इसका उपचार किया जाता है। बाद में डॉक्टर ग्लूकोमा के प्रकार तथा उसके कारण हुई दृष्टिक्षमता की हानि को ध्यान में रखकर लेजर या सर्जरी की सलाह देते हैं।
 
ग्लूकोमा के सही इलाज के लिए जरूरी है कि किसी विशेषज्ञ से इसका इलाज करवाएं। सबसे जरूरी है कि दवा से संबंधित डॉक्टरी निर्देशों का ध्यानपूर्वक पालन करें। दवा की मात्रा को कभी खुद ही कम या ज्यादा नहीं करें। चूंकि इस रोग से पूर्ण मुक्ति संभव नहीं है इसलिए आंखों की नियमित जांच कराना बहुत जरूरी है इसमें लापरवाही आंखों के लिए घातक हो सकती है।

 

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