नई दिल्ली
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार को विधानसभा में प्रदूषण और उसके रोकथाम से संबंधित नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट के अनुसार, सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों की संख्या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के अनुरूप नहीं थी, जिसके चलते वायु गुणवत्ता सूचकांक का डेटा अविश्वसनीय रहा। उचित निगरानी के लिए आवश्यक प्रदूषक सांद्रता डेटा उपलब्ध नहीं था और लेड के स्तर की माप भी नहीं की गई। प्रदूषण स्रोतों पर वास्तविक समय का डेटा न होने से जरूरी अध्ययन नहीं हो सके।
वाहनों से होने वाले उत्सर्जन का कोई आकलन नहीं किया गया, जिससे स्रोत-विशिष्ट रणनीतियां बनाने में मुश्किलें आईं। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 24 निगरानी स्टेशनों में से 10 में बेंजीन का स्तर तय सीमा से अधिक था, लेकिन पेट्रोल पंपों से होने वाले उत्सर्जन की प्रभावी निगरानी नहीं हुई।
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था भी चिंता का विषय रही। दिल्ली में 9,000 बसों की आवश्यकता के मुकाबले केवल 6,750 बसें उपलब्ध थीं। बस प्रणाली में संचालन संबंधी अक्षमताएं, जैसे बसों का ऑफ-रोड रहना और तर्कहीन मार्ग योजना, भी सामने आईं। साल 2011 के बाद ग्रामीण-सेवा वाहनों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, जबकि जनसंख्या लगातार बढ़ी और पुराने वाहन प्रदूषण बढ़ाते रहे।
वैकल्पिक परिवहन साधनों (मोनोरेल, लाइट रेल ट्रांजिट, ट्रॉली बस) के लिए आवंटित बजट पिछले सात वर्षों से अप्रयुक्त पड़ा रहा।
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि सार्वजनिक परिवहन बसों की उत्सर्जन जांच, जो माह में दो बार अनिवार्य है, नियमित रूप से नहीं हुई।
प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र जारी करने में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामने आईं, जिसमें अत्यधिक उत्सर्जन वाले वाहनों को भी पास कर दिया गया। प्रदूषण जांच केंद्रों का कोई निरीक्षण या थर्ड पार्टी ऑडिट नहीं हुआ।
आधुनिक तकनीकों, जैसे रिमोट सेंसिंग डिवाइस, को अपनाने में देरी और वाहन फिटनेस परीक्षणों का ज्यादातर मैन्युअल तरीके से होना भी चिंताजनक रहा।
वित्त वर्ष 2018-19 में 64 प्रतिशत वाहन, जो फिटनेस परीक्षण के लिए नियत थे, परीक्षण के लिए नहीं पहुंचे। स्वचालित वाहन निरीक्षण इकाइयों का उपयोग न्यूनतम रहा और बिना उचित परीक्षण के फिटनेस प्रमाणपत्र जारी किए गए।
दिल्ली में भाजपा सरकार बनने के बाद, विधानसभा में आबकारी नीति से संबंधित रिपोर्ट, स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित रिपोर्ट और दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) से संबंधित रिपोर्ट सहित अब तक पांच कैग रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जा चुकी हैं।

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