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बीजिंग।

चीन एक ऐसा हथियार बनाने में लगा है, जिसका नाम सुनकर अमेरिका भी थर्राने लगेगा. यह मानव इतिहास की सबसे शक्तिशाली मशीन गन है, जिसे चीनी इंजीनियर और वैज्ञानिक विकसित कर रहे हैं. इसकी ताकत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इसमें पांच से ज्यादा बैरल होंगे. वहीं यह 450,000 गोलियां प्रति मिनट फायर कर सकेगा.

गोलीबारी का घनत्व 7 मैक से ज्यादा की गति से यात्रा करने वाली हाइपरसोनिक मिसाइलों को भी रोक सकता है. अमेरिका के लिए यह चिंता की बात है. क्योंकि अभी तक उसके पास मौजूद ‘फालैंक्स सिस्टम’ प्रति मिनट 4,500 राउंड गोलियां फायर कर सकता है.
हालांकि इस हथियार की ताकत ही इसकी कमजोरी रही है. लाखों गोलियां प्रति मिनट दागने वाले इस हथियार के लिए गोला-बारूद भरना एक असंभव चुनौती माना जाता रहा है. लेकिन चीन के केंद्रीय औद्योगिक केंद्र ताइयुआन के शोधकर्ताओं ने इसका समाधान खोज निकाला है. इसके लिए वह एक कंटेनर जैसा मैग्जीन बनाएंगे, जिसमें बैरल भरे होते हैं. प्रत्येक बैरल पहले से ही गोलियों से भरा होता है. फायरिंग के बाद बैरल को कंटेनर समेत डिस्पोज कर दिया जाता है.

क्या है इस बंदूक की टेक्नोलॉजी
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर चीन विश्वविद्यालय के यांत्रिक और विद्युत इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर लू शुताओ के नेतृत्व वाली प्रोजेक्ट टीम ने कहा, ‘बॉक्सटाइप रोटरी फायरिंग तकनीक से लोडिंग की स्पीड बढ़ती है और बैरल की शक्ति और सटीकता में गिरावट नहीं आती. साथ ही, कई हमलों के दौरान लगातार संचालन और तेज जवाबी हमला संभव हो सका है. पारंपरिक मशीन गन मैकेनिकल ट्रिगर्स का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन यह प्रति सेकंड 7,500 हमले नहीं कर सकती है, जो चीन की सेना चाहती है. इस समस्या से निपटने के लिए लू और उनके सहयोगियों ने एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रिगर विकसित किया है, जिसमें कॉइल्स का इस्तेमाल होता है.
यह संपर्क रहित ट्रिगर तुरंत गोली में मौजूद मिश्र धातु की तार को पिघला देगा, जिससे हाई पावर के साथ गोली निकलेगी. इस इलेक्ट्रॉनिक ट्रिगर की दक्षता इतनी ज्यादा है कि यह 17.5 माइक्रोसेकंड में फायरिंग करने लगता है. रिपोर्ट के मुताबिक टेस्ट डेटा कन्फर्म करता है कि प्रत्येक बैरल 450,000 राउंड प्रति मिनट का लक्ष्य पाने के लिए पर्याप्त है.

सबसे पहले कब आया खतरनाक हथियार?
इस हथियार की अवधारणा पहली बार 1990 के दशक में ऑस्ट्रेलियाई आविष्कारक माइक ओ’ड्वायर ने प्रस्तुत की थी. हथियार का नाम मेटल स्टॉर्म रखा गया. उनकी कंपनी, मेटल स्टॉर्म इंक, ने एक 36-बैरल टेस्ट सिस्टम बनाया जो 10 लाख राउंड प्रति मिनट की फायरिंग दर तक पहुंच गई. साल 2006 में उन्होंने मीडिया को बताया कि चीनी सेना ने इस तकनीक के लिए 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की पेशकश की थी. जब अमेरिका को इसकी खबर लगी तो उन्होंने ओ’ड्वायर के साथ युद्धक्षेत्र के लिए नए हथियार सिस्टम विकसित करने में सहयोग किया. लेकिन तकनीकी और अन्य चुनौतियों के कारण प्रोजेक्ट रद्द हो गया. बाद में 2012 में मेटल स्टॉर्म इंक दिवालिया हो गई.

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