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विज्ञान के नित-नये अविष्कारों ने इंसान को चकाचैंध कर दिया है। चिकित्सा जगत में तो अजूबे अविष्कार हुए हैं। अलग-अलग यंत्र, मशीनें, अनेक औषधियां और न जाने कितनी सुविधाएं पर फिर भी रोगों का ताड़व कम नहीं हुआ है बल्कि अनेक व्याधियों ने इंसान को अपने पंजे में जकड़ रखा है। हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटिज आज के संघर्षशील युग की देन हैं। इसके अलावा आज हमें हायपरकोलेस्ट्राल के भी अधिकांश रोगी मिलते हैं। इसका कारण है हमारे आहार-विहार में विषमता, क्योंकि हमें ऐशोआराम की जिन्दगी पसन्द है। हम श्रम से कतराते हैं, ऐसी जिन्दगी का ही परिणाम है-हायपरकोलेस्ट्राल।

हृदय रोग को बढ़ानेवाला यह कोलेस्ट्राल है जिसे नियंत्रण में रखना शरीर के लिए अत्यावश्यक है। इसकी अधिक मात्रा हृदय व मस्तिष्क धमनियों को जितना नुकसान पहुंचाती है, वैसे ही इसकी प्राकृत मात्रा शरीर को स्वस्थ रखने में सक्षम रहती है। कोलेस्ट्राल का अंतर्भाव लिपिड में होता है। ये लिपिड 5 प्रकार के होते हैं और मनुष्य शरीर के महत्वपूर्ण घटक हैं। सभी प्राणियों के कोषों में कोलेस्ट्राल होता है व अधिकांशतः यह नाड़ी संस्थान में रहता है। इसका स्राव पित्तरस में होता है व यकृतीय संवहन में यह सहभागी होता है। चिकित्सीय दृष्टि से इसका अत्यन्त महत्व है। शरीर में निर्मित सभी प्रकार के स्टेराइड हार्मोन का भी आवश्यक अंग है।

लिपिड के एकत्रीकरण, संवहन, ट्रांसपोर्ट व उत्सर्जन में विकृति होने पर अनेक व्याधियां उत्पन्न होती हैं जैसे मोटापा, यकृतप्लीहा का बढ़ना, एथेरोस्क्लेकोसिस, अग्न्याशय में सूजन, पित्तामशरी इत्यादि। इन सब में एथोरोस्क्लेरोसिस सबसे महत्वपूर्ण है जो कि लिपिड के एकत्रीकरण से होता है। धमनियों में कोलेस्ट्राल जमा होने से कड़कपन आ जाता है फलस्वरूप धमनियों का मार्ग संकरा हो जाता है जिससे धमनियों का मार्ग संकरा हो जाता है जिससे धमनियों में स्थित रक्त हृदय, मस्तिष्क व शरीर के अन्य भागों में कम पहुंचता है। यह रूकावट हृदय की धमनियों में होने से छाती में दर्द (एन्जाइना) या कभी-कभी हार्ट अटैक भी होता है। यह रूकावट नाड़ीवह संस्थान यानी मस्तिष्क में होने पर स्मरणशक्ति का नाश, मस्तिष्क के उच्चतम कार्यों में विकृति, लकवा व वृद्धावस्था में व्यवहार, स्वभावादि में अंतर आता है।

इसके अलावा अन्य अंगों की धमनियों में यह कोलेस्ट्राल जमा होकर गैंगरीन उत्पन्न करता है। इस कोलेस्ट्राल से लेरिक सिंड्रोम नामक व्याधि भी होती है जिसमें मुख्यतः पेट व पैरों की धमनी में रूकावट होता है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह के रोगी में कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ने से रक्तवाहिनी में जमा होने की आशंका ज्यादा रहती है, अतः उच्च रक्तचाप व मधुमेह रोगी को कोलेस्ट्राल निवारक आहार लेना आवश्यक है जिसमें सलाद, हरी सब्जी, अंकुरित आहार, फल, छाछ की प्रचुर मात्रा हो।

कोलेस्ट्राल की मात्रा सामान्य करने में सबसे महत्वपूर्ण है-आहार, विहार पर नियंत्रण होना। आहार में चर्बीयुक्त पदार्थ जैसे तेल, घी, मांसाहार, शराब, आलू, चावल इत्यादि का सेवन कम करें। विहार में मानसिक तनाव से बचें। हायपर कोलेस्ट्राल के रूग्णों को अक्सर मोटापा अधिक रहता है अतएव उन्हें वजन पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है। कोलेस्ट्राल कम करने के लिए आयुर्वेद संहिताओं में मेदोहर औषधियां वर्णित है। इनमें मुख्यतया त्रिकटु, कुटकी, लहसुन, पुनर्नवा, विडंग इत्यादि चिकित्सक के परामर्शानुसार लेना चाहिए। इसके अलावा आरोग्यवर्घिनी व त्रिफला गुग्गुल 2 चम्मच सुबस-शाम लेना चाहिए। साथ में मोटापा होने पर चिकित्सक के परामर्शानुसार ही औषधि लेनी चाहिए।

हायपरकोलेस्ट्राल के कारण अधिकतर हृदयगत धमनियां (कोरोनरी आर्टरीस) प्रभावित होती हैं जिससे हृदयगत विकार जैसे छाती में दर्द (एन्जाइना) जैसी (व्याधियां) होती हैं। आधुनिक चिकित्सानुसार इसमें एंजियोप्लास्टी करके धमनियों में से कोलेस्ट्राल को साफ करते हैं परन्तु फिर भी इन रूग्णों को सावधानियां रखनी पड़ती हैं जिससे फिर न एंजियोप्लास्टी करवानी पड़े। आयुर्वेद शास्त्र में कोलेस्ट्राल को कम करने व धमनियों का संकरापन दूर करने के लिए अनेक औषधियां हैं जिससे एंजियोप्लास्टी करने की संभावना कम होती है। अतएव योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में मेदोहर व हृदय औषधि लेकर एंजियोप्लास्टी से बचा जा सकता है।

 

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