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The High Court reprimanded the Principal for not declaring public participation employees as permanent employees.

  • दो सप्ताह मे आदेश का पालन करने की दी मोहलत

भोपाल। प्रदेश क़े शासकीय महाविद्यालयों मे कई वर्षो से कार्यरत जनभागीदारी के अंतर्गत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी को उच्च शिक्षा विभाग द्वारा कोर्ट के आदेश के बाद भी स्थाईकर्मी की श्रेणी नहीं दे रहा है। जबकि कुछ कॉलेजों ने इस श्रेणी का लाभ दे दिया है। जबकि कई शासकीय महाविद्यालयों क़े प्राचार्य द्वारा कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है। यानि वे मनमानी पर उतारू हैं। जिससे कर्मचारी फिर से उच्च न्यायालय की शरण ले रहे हैं।
शासकीय होलकर विज्ञान महाविद्यालय इंदौर के प्राचार्य की कर्मचारी विरोधी सोच का मामला सामने आया है।

उच्च शिक्षा महाविद्यालयीन जनभागीदारी कर्मचारी संघ मप्र के राजगढ़ जिले के सदस्य हितेश गुरगेला ने बताया कि इंदौर महाविद्यालय की जनभागीदारी निधि से वेतन पाने वाले कर्मचारियों ने स्थाई कर्मी योजना से लाभान्वित करने उच्च न्यायालय इंदौर का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय इंदौर ने अंतिम निर्णय 20 दिसंबर 2024 को पारित किया था, लेकिन महाविद्यालय के प्राचार्य ने उच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय का पालन नहीं किया। प्राचार्य के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर की गई। बावजूद इसके प्राचार्य कोर्ट में हाजिर नहीं हुए, जिससे कार्यवाही लंबे समय तक खिंचती रही। हाइकोर्ट के आदेश का पालन नहीं होने पर प्राचार्य को तलब किया और फटकार लगाई।

अधिवक्ता गौरव पांचाल ने बताया है कि शासकीय होलकर विज्ञान महाविद्यालय इंदौर की प्राचार्य डॉ. अनामिका जैन ने जनभागीदारी निधि से वेतन पाने वाले दैनिक वेतनभोगियों को स्थाईकर्मी योजना से लाभान्वित नहीं करने को लेकर तर्क दिए गए, लेकिन हाईकोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा है कि रिट याचिका में 20 दिसंबर 2024 को पारित आदेश को लगभग एक वर्ष बीत चुका है। यह स्थगन का आधार नहीं हो सकता है। पुनर्विचार याचिका लंबित है। अंतिम अनुमति के रूप में न्यायालय द्वारा पारित आदेश का पालन करें अन्यथा प्राचार्य के विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जाएगी। हाइकोर्ट ने दो सप्ताह बाद होने वाली आगामी सुनवाई से पहले कंप्लायंस करने के निर्देश प्राचार्य को दिए।

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