जानिए बजरंगबली ने क्यों अपना हृदय चीरा और कैसे पड़ा हनुमान नाम ?

जानिए बजरंगबली ने क्यों अपना हृदय चीरा और कैसे पड़ा हनुमान नाम ?

Know why Bajrangbali tore his heart and how he got the name Hanuman?

देशभर में आज बड़े ही धूम-धाम के साथ भगवान हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। सुबह से ही मंदिरों में भारी भीड़ है। उज्जैन के प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती के बाद महाकाल का हनुमान जी के स्वरूप में श्रृंगार किया गया।

भगवान शंकर से हनुमानजी को मिला वरदान
हनुमान से शंकरजी के अवतार हैं और भोलेनाथ से हनुमान जी को वरदान मिला है कि हनुमान जी को किसी भी अस्त्र से नहीं मारा जा सकता।

हनुमान जी क्यों रखते हैं अपने पास गदा
हनुमान जी दुष्टों को संहार और भक्तों की समस्याओं का निदान गदा से करते हैं। हनुमान जी हाथ में हमेशा गदा होती है। क्या आपको ये मालूम है हनुमान जी को गदा कैसे प्राप्त हुई है। दरअसल बजरंगबली को गदा कुबेर देव मिली थी और साथ में ये भी आशीर्वाद दिया कि हनुमान को कभी भी किसी युद्ध में परास्त नहीं किया जा सकता है।

भगवान हनुमान को यमराज से मिला वरदान
भूत पिशाच निकट नहि आवै, महावीर जब नाम सुनावै…भगवान हनुमान का नाम लेते ही सभी तरह की नकारात्मक शक्तियां फौरन ही भाग जाती हैं। धर्मराज यमराज से भी हनुमान जी को वरदान मिला हुआ है, उन्हें कभी भी यमराज का शिकार नहीं होने का वरदान प्राप्त है।

सूर्यदेव से मिला हनुमान जी को तेज
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान हनुमान को अमरता का वरदान मिला है। हनुमानजी कलयुग में साक्षात और जाग्रत देवता हैं। यह भक्तों की पूजा से जल्दी प्रसन्न होकर हर तरह की मनोकामनाओं का पूरा करते हैं। हनुमान जी भगवान शिव के ग्याहरवें अवतार हैं और उन्हें कई तरह की शक्तियां मिली है। मान्यता है कि सूर्यदेव से हनुमान जी को तेज प्राप्त है। सूर्य देव ने उन्हें अपने तेज का सौवां अंश दिया है इसी कारण हनुमान जी के सामने कोई नहीं टिक पाता।

जब हनुमानजी ने अपना सीना चीर दिया…
हनुमानजी आज भी इस धरती पर विचरण करते हैं। हनुमान जी कलयुग के देवता हैं। कलयुग में हनुमान जी की आराधना अत्यंत लाभकारी होती है। नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरी शक्तियां हनुमानजी की आराधना करने से भाग जाती हैं। हनुमानजी ने भगवान राम के दिल में ऐसी जगह बनाई कि दुनिया उन्हें प्रभु राम का सबसे बड़ा भक्त मानती है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद दरबार में उपस्थित सभी लोगों को उपहार दिए जा रहे थे। इसी दौरान माता सीता ने रत्न जड़ित एक बेश कीमती माला अपने प्रिय हनुमान को दी। प्रसन्न चित्त से उस माला को लेकर हनुमान जी थोड़ी दूरी पर गए और उसे अपने दांतों से तोड़ते हुए बड़ी गौर से माला के मोती को देखने लगे। उसके बाद उदास होकर एक-एक कर उन्होंने सारे मोती तोड़-तोड़ कर फेंक दिए।

यह सब दरबार में उपस्थित लोगों ने देखा तो सब के सब आश्चर्य में पड़ गए। जब हनुमान जी मोती तो तोड़ कर फेंक रहे थे तब लक्ष्मणजी को उनके इस कार्य पर बहुत क्रोध आया,इस बात को उन्होंने श्री राम का अपमान समझा। उन्होंने प्रभु राम से कहा कि ‘हे भगवन, हनुमान को माता सीता ने बेशकीमती रत्नों और मनकों की माला दी और इन्होंने उस माला को तोड़कर फेंक दिया।

जिसके बाद भगवान राम बोले, ‘हे अनुज तुम मुझे मेरे जीवन से भी अधिक प्रिय हो, जिस कारण से हनुमान ने उन रत्नों को तोड़ा है यह उन्हें ही मालूम है। इसलिए इस जिज्ञासा का उत्तर हनुमान से ही मिलेगा। तब राम भक्त हनुमान ने कहा ‘मेरे लिए हर वो वस्तु व्यर्थ है जिसमें मेरे प्रभु राम का नाम ना हो। मैंने यह हार अमूल्य समझ कर लिया था, लेकिन जब मैंने इसे देखा तो पाया कि इसमें कहीं भी राम-नाम नहीं है। उन्होंने कहा मेरी समझ से कोई भी वस्तु श्री राम के नाम के बिना अमूल्य हो ही नहीं सकती। अतः मेरे हिसाब से उसे त्याग देना चाहिए। यह बात सुनकर भ्राता लक्ष्मण बोले कि आपके शरीर पर भी तो राम का नाम नहीं है तो इस शरीर को क्यों रखा है? हनुमान तुम इस शरीर को भी त्याग दो। लक्ष्मण की बात सुनकर हनुमान ने अपना वक्षस्थल नाखूनों से चीर दिया और उसे लक्ष्मणजी सहित सभी को दिखाया, जिसमें श्रीराम और माता सीता की सुंदर छवि दिखाई दे रही थी। यह घटना देख कर लक्ष्मण जी से आश्चर्यचकित रह गए,और अपनी गलती के लिए उन्होंने हनुमानजी से क्षमा मांगी ।

आज यानी 23 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। इस दिन हनुमान जन्मोत्सव पर भगवान हनुमान की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है। ग्रंथों के अनुसार हनुमान जी के बचपन का नाम मारुति था। उन्हें उनके पिता पवन देव और माता अंजनी के पुत्र के रूप में जाना जाता है। एक दिन पवन पुत्र अपनी निद्रा से जागे तो उन्हें तीव्र भूख लगी। उन्होंने पास के एक वृक्ष पर लाल पका फल देखा, जिसे खाने के लिए वे निकल पड़े। दरअसल मारुती जिसे लाल पका फल समझ रहे थे वे सूर्यदेव थे। उस दिन अमावस्या का दिन था और राहु सूर्य पर ग्रहण लगाने वाला था, लेकिन जब तक सूर्य को ग्रहण लग पाता, उससे पहले ही हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया। सारे संसार में अन्धकार व्याप्त हो गया। मनुष्य से लेकर सभी देवता तक बड़े व्याकुल हो गए और हनुमानजी को मनाने के लिए आ गए लेकिन, मारुति हठ करके बैठ गए।

सभी देवताओं ने देवराज इंद्र से सहायता मांगी। इंद्रदेव के बार-बार आग्रह करने पर जब हनुमान जी ने सूर्यदेव को मुक्त नहीं किया तो, इंद्र ने विवश होकर अपने वज्र से मारुति के हनु यानी ठोड़ी पर प्रहार किया, जिससे सूर्यदेव मुक्त हुए। वहीं वज्र के प्रहार से पवन पुत्र मूर्छित होकर पृथ्वी पर आ गिरे और उनकी ठुड्डी टेढ़ी हो गई। जब पवन देवता को इस बात की जानकारी हुई तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने अपनी शक्ति से पूरे संसार में वायु के प्रवाह को रोक दिया, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवों में त्राहि-त्राहि मच उठी। इस विनाश को रोकने के लिए सारे देवगण पवनदेव से आग्रह करने पहुंचे कि वे अपने क्रोध को त्याग पृथ्वी पर प्राणवायु का प्रवाह करें। सभी देवताओं ने पवन देव की प्रसन्नता के लिए बाल हनुमान को पहले जैसा कर दिया और साथ ही बहुत सारे वरदान भी दिए। देवताओं के वरदान से बालक हनुमान और भी ज्यादा शक्तिशाली हो गए, लेकिन वज्र के चोट से उनकी हनु टेढ़ी हो गई, जिसके कारण उनका एक नाम हनुमान पड़ा।

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