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जस्टिस संजीव सचदेवा को मिल सकती है MP हाईकोर्ट की कमान

जबलपुर  जस्टिस संजीव सचदेवा एमपी हाईकोर्ट के नए चीफ जस्टिस हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश की है। वे एक्टिंग चीफ जस्टिस हैं। 3 नए जज मिले हाईकोर्ट को 3 नए जज मिले हैं। जबलपुर के अपर महाधिवक्ता अमित सेठ, ग्वालियर के अधिवक्ता दीपक खोत व पवन द्विवेदी जज बनाए गए। हाईकोर्ट ने 11 नवंबर 2022 को नाम सुप्रीम कोर्ट भेजे थे। कॉलेजियम ने जांच की। जनवरी 24 को तीनों नाम केंद्र को भेजे। 3 नए जज आने से हाईकोर्ट में 35 जज हो जाएंगे। कर्नाटक, पटना, गुवाहाटी, झारखंड हाईकोर्ट में सीजे नियुक्ति के नामों की सिफारिश केंद्र को भेजी है। जस्टिस संजीव सचदेवा का जन्म 7 अप्रैल 1964 को हुआ था। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री प्राप्त की और वर्ष 1989 में वकालत शुरू की। वर्ष 2013 में उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बाद में वे स्थायी न्यायाधीश बने और 2024 में उनका तबादला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में किया गया। वर्तमान में वे जबलपुर हाईकोर्ट में प्रशासनिक न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 12

SC ने यौन शिक्षा में सुधार और POCSO मामलों की रियल-टाइम ट्रैकिंग के सुझावों पर केंद्र सरकार से राय मांगी

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई को सरकार को निर्देश दिया कि वह बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों से निपटने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर POCSO कोर्ट बनाए। कोर्ट ने कहा कि कई राज्यों ने स्पेशल POCSO कोर्ट बनाए हैं, लेकिन तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में केस पेंडेंसी के चलते और ज्यादा कोर्ट बनाए जाने की जरूरत है। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के मामलों के लिए स्पेशल कोर्ट कम होने के कारण मामले की जांच करने के लिए डेडलाइन का पालन नहीं हो पा रहा है। कोर्ट ने पॉक्सो केस के लिए निर्धारित डेडलाइन के अंदर ट्रायल पूरा करने के अलावा निर्धारित अवधि के भीतर चार्जशीट दाखिल करने का भी निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट और एमिकस क्यूरी वी गिरी और सीनियर एडवोकेट उत्तरा बब्बर को POCSO कोर्ट की स्थिति पर राज्यवार डीटेल देने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें उसने "बाल बलात्कार की घटनाओं की संख्या में खतरनाक वृद्धि" को हाइलाइट करते हुए एक्शन लिया था। कोर्ट ने राज्य सरकारों से उन जिलों में दो कोर्ट बनाने को कहा जहां POCSO अधिनियम के तहत बाल शोषण के पेंडिंग मामलों की संख्या 300 से ज्यादा है। कोर्ट ने कहा POCSO एक्ट के तहत 100 से ज्यादा FIR वाले हर जिले में एक कोर्ट बनाने के जुलाई 2019 के निर्देश का मतलब था कि डेजिगनेटेड कोर्ट केवल कानून के तहत ऐसे मामलों से निपटेगा। पहले जानिए क्या है पॉक्सो एक्ट भारत में बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए पॉक्सो एक्ट, 2012। अगर कोई 18 साल से कम उम्र का यौन शोषण करता है तो उसे इस कानून के तहत सजा मिलती है। बच्चों को गलत तरीके से छूना, उन्हें गलत तरीके से छूने के लिए कहना, या उनके साथ यौन संबंध बनाना, बच्चों को अश्लील चीजें दिखाना, उन्हें वेश्यावृत्ति या पोर्नोग्राफी में शामिल करना, या इंटरनेट पर उनसे गलत बातें करना भी बाल यौन शोषण (CSA) है। पॉक्सो एक्ट के तहत पुरुष और महिला आरोपी दोनों के खिलाफ एक्शन लिया जा सकता है। फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट का हाल बहरहाल, इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्श फंड (ICPF) की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में CSA के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। लेकिन इन मामलों को निपटाने की रफ्तार बहुत धीमी है। इसी वजह से भारत सरकार ने अक्टूबर 2019 में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने योजना शुरू की। इसके तहत, देश भर में 1,023 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) बनाए गए हैं। ये कोर्ट CSA के मामलों की तेजी से सुनवाई करते हैं। भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में FTSC को 1 अप्रैल, 2023 से 31 मार्च, 2026 तक जारी रखने की मंजूरी दी है। इस पर कुल 1952.23 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (ICPF) की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों को निपटाने की क्या स्थिति है। पूरे देश में, 2022 में सिर्फ 3% मामलों में ही दोषियों को सजा मिली। मतलब 2,68,038 मामलों में से सिर्फ 8,909 मामलों में ही आरोपियों को दोषी पाया गया। हर FTSC ने 2022 में औसतन सिर्फ 28 पॉक्सो मामलों का निपटारा किया। 2022 में, हर पॉक्सो मामले को निपटाने में औसतन 2.73 लाख रुपये खर्च हुए। इसी तरह, हर सफल सजायाफ्ता पॉक्सो मामले पर सरकारी खजाने से औसतन 8.83 लाख रुपये खर्च हुए। अगर कोई नया मामला नहीं आता है, तो भी भारत को 31 जनवरी, 2023 तक लंबित पॉक्सो मामलों के बैकलॉग को खत्म करने में लगभग नौ (9) साल लगेंगे। अभी 2.43 लाख पॉक्सो मामले पेंडिंग हैं। इसलिए, यह बहुत जरूरी है कि हर जिले में स्थिति का दोबारा आकलन किया जाए और जरूरत पड़ने पर नए ई-पॉक्सो कोर्ट बनाए जाएं। योजना के अनुसार, सभी 1,023 स्वीकृत फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट को तुरंत पूरी तरह से चालू किया जाना चाहिए। ट्रायल की समय-सीमा तय की जाए रिपोर्ट में कहा गया है कि पीड़ित के लिए न्याय की लड़ाई लोअर कोर्ट में सजा होने के बाद भी खत्म नहीं होती है। यह लड़ाई तब तक जारी रहती है जब तक कि अपील की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती। इसलिए, अपील/ट्रायल के समय को तय किया जाना चाहिए ताकि जल्द न्याय मिल सके। इस संबंध में नीतियां बनाई जानी चाहिए, और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर समयबद्ध ढांचे बनाए जाने चाहिए ताकि लंबित पॉक्सो मामलों का निपटारा तेजी से हो सके। विशेष अदालतें स्थापित करने के निर्देश सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने 16 दिसंबर, 2019 को एक विस्तृत आदेश पारित किया था। इसमें राज्य सरकारों को पॉक्सो एक्ट, 2012 के तहत मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने के निर्देश दिए गए थे। यह 25 जुलाई, 2019 के आदेश के क्रम में था, जिसमें सभी राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि हर जिले में 60 दिनों के भीतर एक विशेष पॉक्सो अदालत स्थापित की जाए, जिसमें 100 से अधिक पॉक्सो मामले लंबित हैं। कानून और न्याय मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर कार्रवाई की और जनवरी 2020 में बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के मामलों के त्वरित निपटान के लिए फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) की योजना लेकर आया. इस योजना में FY 2021-22 के अंत तक पूरे भारत में बलात्कार और पॉक्सो मामलों के त्वरित निपटान के लिए 389 एक्सक्लूसिव पॉक्सो कोर्ट (EPC) सहित 1,023 FTSC स्थापित करने की परिकल्पना की गई थी। इस विश्लेषण के माध्यम से, इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (ICPF) पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों और शिकायतों के संबंध में भारत की स्थिति पर प्रकाश डालता है। इस व्यापक कानून के बनने के एक दशक बाद भी, पीड़ितों और उनके परिवारों की उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं, जिन्हें पहले के कानूनों द्वारा पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया था। हालांकि, जिस गति से मामलों को निपटाया जा रहा है, वह बहुत निराशाजनक है। केस बैकलॉग की चौंकाने वाली स्थिति रिपोर्ट में केस बैकलॉग की एक चौंकाने वाली प्रवृत्ति का पता चला। … Read more

HC ने 31 सप्ताह की गर्भवती नाबालिग को दी प्रसव की अनुमति, दुष्कर्म से जन्मे बच्चों के लिए पॉलिसी बनाने के आदेश

जबलपुर हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में 31 सप्ताह की गर्भवती नाबालिग को बच्चे को जन्म देने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने यह फैसला नाबालिग और उसके माता-पिता की बच्चे को जन्म देने की इच्छा को ध्यान में रखते हुए दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को नाबालिग को सभी जरूरी चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने और बच्चे के जन्म के बाद उसकी देखभाल करने का भी निर्देश दिया है। जस्टिस विनय सराफ की पीठ ने दिया आदेश साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा है कि MTP (Medical Termination of Pregnancy) अधिनियम मेडिकल बोर्ड को गर्भावस्था की समाप्ति पर राय बनाते समय गर्भवती की शारीरिक और भावनात्मक भलाई का भी मूल्यांकन करने की अनुमति देता है। जस्टिस विनय सराफ की अवकाशकालीन एकलपीठ ने यह आदेश दिया। सुनवाई में कोर्ट ने की अहम टिप्पणी कोर्ट ने कहा कि MTP अधिनियम मेडिकल बोर्ड को सुरक्षा प्रदान करता है, जब वे गर्भावस्था की समाप्ति के बारे में सद्भावपूर्वक राय बनाते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि मेडिकल बोर्ड को अपनी राय बनाते समय सिर्फ MTP अधिनियम के मानदंडों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्हें गर्भवती महिला की शारीरिक और भावनात्मक स्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि मेडिकल बोर्ड को अपनी राय और परिस्थितियों में किसी भी बदलाव के लिए ठोस कारण बताने चाहिए। गर्भावस्था की समाप्ति के मामलों में गर्भवती महिला की सहमति सबसे महत्वपूर्ण है। नाबालिग के साथ हुआ था दुराचार यह मामला मंडला जिले के खटिया थाना क्षेत्र का है। पुलिस ने एडीजे (अतिरिक्त जिला जज) कोर्ट को जानकारी दी थी कि एक नाबालिग लड़की के साथ दुराचार हुआ है और वह गर्भवती है। मेडिकल रिपोर्ट में बताया गया था कि नाबालिग के पेट में पल रहा भ्रूण 29 सप्ताह और 6 दिन का है। डॉक्टरों ने कहा था कि अगर गर्भपात किया जाता है तो नाबालिग की जान को खतरा हो सकता है। इसके बाद एडीजे कोर्ट ने इस मामले को हाईकोर्ट में भेजा था। पीड़िता और माता-पिता ने जताई थी इच्छा हाईकोर्ट में नाबालिग और उसके माता-पिता ने एक पत्र पेश किया। उस पत्र में उन्होंने गर्भावस्था जारी रखने और बच्चे को जन्म देने की इच्छा जताई थी। कोर्ट ने कहा कि स्त्री रोग विशेषज्ञ ने भी राय दी है कि भ्रूण 29 सप्ताह से अधिक का है। इसलिए, गर्भपात करने से नाबालिग की जान को खतरा हो सकता है। राज्य सरकार वहन करेगी बच्चे का खर्च कोर्ट ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि नाबालिग को बच्चे को जन्म देने के लिए डॉक्टरों की एक विशेषज्ञ टीम के माध्यम से सभी उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाएं। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया से संबंधित सभी खर्च राज्य सरकार वहन करेगी। गर्भावस्था के दौरान, बच्चे के जन्म के समय और उसके बाद डॉक्टरों द्वारा सभी आवश्यक देखभाल और सावधानी बरती जाएगी। प्रसव के बाद नाबालिग की देखभाल की जाएगी और राज्य सरकार का यह कर्तव्य होगा कि वह स्थापित मानदंडों के अनुसार बच्चे की देखभाल करे। 12 तक की पढ़ाई रहेगी फ्री कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बच्चे को कक्षा 12 तक मुफ्त शिक्षा दी जाएगी। बच्चे के वयस्क होने तक उसे सभी चिकित्सा सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़ित और बच्चे का नाम किसी भी तरह से उजागर नहीं किया जाएगा। राज्य सरकार को उठाने चाहिए कदम कोर्ट ने राज्य सरकार को यौन उत्पीड़न, बलात्कार या अनाचार से बचे बच्चों के लिए भोजन, आश्रय, शिक्षा और सुरक्षा की सुविधाएं प्रदान करने के लिए एक नीति बनाने पर विचार करने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर नाबालिग और उसके माता-पिता प्रसव के बाद बच्चे को गोद देना चाहते हैं, तो राज्य सरकार को इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कानूनी प्रावधानों के अनुसार आवश्यक कदम उठाने चाहिए। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 15

वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अब गवाह कोर्ट में गवाही दे सकेंगे, कई बार दूर तक जाने की परेशनी से निजात मिल सकेगी

भोपाल अदालतों में गवाहों की पेशी में कई बार केस में देरी की परेशानी अब बीते जमाने की बात होने वाली है. केंद्र सरकार की न्यायश्रुति योजना के तहत मध्य प्रदेश में पुलिस अब करीब 2000 स्थान चिन्हित कर वहां वीडियो कॉन्फ्रेसिंग रूम बनाने की तैयारी में है. दरअसल, यह देखा गया है कि कई बार सिर्फ गवाहों की गैर-मौजूदगी की वजह से अदालत को केस की अगली सुनवाई के लिए तारीख देनी होती है. ज्यादातर ममलों में यह वह गवाह होते हैं जिनकी पुलिस इन्वेस्टिगेशन में अहम भूमिका होती है. जैसे- प्रत्यक्षदर्शी, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर, केस से जुड़े आईओ (इन्वेस्टिगेटिव ऑफिसर) या मेडिकल ऑफिसर. वहीं, कई बार केस से जुड़े ऐसे अधिकारीयों या कर्मचारियों का ट्रांसफर हो जाता है, लेकिन कोर्ट की सुनवाई के दौरान गवाही में सिर्फ 'हां' या 'ना' कहने के लिए उन्हें उसी शहर या इलाके की कोर्ट में आना होता है, जहां कार्यरत रहने के दौरान उन्होंने केस में योगदान दिया हो. लेकिन देखा गया है कि कई बार अलग-अलग कारणों से यह गवाह कोर्ट समय पर नहीं पहुंच पाते और कोर्ट को अगली तारीख देनी पड़ती है, जिससे सुनवाई में अनावश्यक देरी होती है और केस लंबा खींचता जाता है. अब केंद्र सरकार इसी समस्या को दूर करने के लिए न्यायश्रुति योजना के तहत पुलिस थानों और एसपी कार्यालय, सीएसपी कार्यालय और एसडीओपी कार्यालय में वीडियो कांफ्रेंसिंग रूम बनाने के लिए फंड देने वाली है. पुलिस कमिश्नर प्रणाली वाले भोपाल और इंदौर शहर में एसीपी कार्यालय में इसकी व्यवस्था की जाएगी. इस योजना के तहत स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो साउंडप्रूफ केबिन तैयार करेगा, जहां वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए यह गवाह कोर्ट में गवाही दे सकेंगे और सिर्फ गवाही देने के लिए उन्हें कई बार दूर तक जाने की परेशनी से निजात मिल सकेगी.   Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 14

हाईकोर्ट में रिटायर्ड लेक्चरर की दायर की गई अवमानना याचिका पर सुनवाई, DEO- BEO के खिलाफ वांरट

ग्वालियर  ग्वालियर हाईकोर्ट में स्कूल शिक्षा विभाग के रिटायर्ड लेक्चरर द्वारा दायर की गई अवमानना याचिका पर महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव और जिला शिक्षा अधिकारी के साथ ही BEO को 05-05 हजार जमानती वारंट से तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 2 जुलाई को होगी। दरअसल स्कूल शिक्षा विभाग के रिटायर्ड लेक्चर भारत सिंह सिकरवार के एडवोकेट आरबीएस तोमर ने साल 2023 में अवमानना याचिका दायर की गई थी, जिसमें कोर्ट को बताया गया था कि 2020 में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के वार्षिक इंक्रीमेंट की गणना का आदेश दिया था, ताकि उनकी पेंशन का पुनः निर्धारण किया जा सके। 6 साल बीतने के बाद भी हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के आदेश का पालन नहीं किया गया। ऐसे में हाईकोर्ट ने कहा कि अवमानना याचिका पर सुनवाई के बाद 28 नवंबर 2023 को नोटिस हुआ। जिसके अनुपालन प्रतिवेदन के लिए 3 सप्ताह का समय भी दिया गया। तब से लेकर अब तक दो बार पुनर्विचार याचिका दायर की गई, जिसे खारिज किया गया। ऐसे में कोर्ट ने कहा कि 6 साल बीतने के बाद भी आदेश का पालन अभी तक नहीं किया जा सका है, बल्कि हर बार समय मांगा जाता रहा है। ऐसी स्थिति में लगता है कि अधिकारी आदेश का पालन करने में गंभीर नहीं है। लिहाजा कोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, जिला शिक्षा अधिकारी अजय कटियार और BEO मंजू सिंह को 05-05 हजार के जमानती वारंट से तलब किया है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 15

हाईकोर्ट ने कविता रैकवार की पार्षदी पुनः बहाल करने के आदेश दिए

जबलपुर  मध्य प्रदेश के जबलपुर से भाजपा की महिला पार्षद कविता रैकवार के पार्षदी शून्य करने के मामले में नया मोड़ आ गया है। हाईकोर्ट ने डिविजनल कमिश्नर के आदेश को रद्द करते हुए कविता रैकवार की पार्षदी पुनः बहाल करने के आदेश दिए हैं। दरअसल 29 अप्रैल को संभागीय कमिश्नर अभय वर्मा ने भाजपा की महिला पार्षद कविता रैकवार की पार्षदी सिर्फ इस आधार पर रद्द कर दी थी कि उनका जाति प्रमाण पत्र फर्जी है। आपको बता दें कि संभागीय कमिश्नर ने यह आदेश भोपाल की उच्च स्तरीय जांच कमेटी के रिपोर्ट के आधार पर सुनाया था। एक दिन पहले ही उच्च स्तरीय आदेश को हाई कोर्ट कर चुका था खारिज 29 अप्रैल को संभागीय कमिश्नर के आदेश के पहले यानी की 28 अप्रैल को हाई कोर्ट भोपाल की उच्च स्तरीय जांच को खारिज कर चुका था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस तरह से किसी के आरोप मात्र लगा देने से किसी का जाति प्रमाण पत्र फर्जी नहीं हो जाता। हाई कोर्ट ने इसमें कहा था कि आप इस मामले में पहले जांच कर ले और जांच में जो बिंदु निकले उस आधार पर आगे की कार्रवाई की जाए। लेकिन 28 तारीख को हाई कोर्ट का फैसला आया और उसके एक दिन बाद ही संभागीय कमिश्नर ने भोपाल की उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कविता रैकवार की पार्षदी रद्द कर दी। जिसके बाद कविता रैकवार ने मामले को दोबारा हाईकोर्ट में चुनौती दी।   हाईकोर्ट ने एक बार फिर से मामले की सुनवाई करते हुए कहा की जब पिछले आदेश में ही यह बात क्लियर हो चुकी थी, कि किसी के आरोप मात्र के आधार आप किसी का जाति प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकता। फिर दोबारा क्यों इस मामले की जांच नहीं कराई गई और कैसे महिला की पार्षदी रद्द कर दी गई। हाई कोर्ट ने दोबारा महिला की पार्षदी बहाल करने के निर्देश दिए। हाई कोर्ट में इस मामले में की टिप्पणी हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि जांच कमेटी का ये दायित्व बनता है कि वो जिस पर आरोप लगाए गए है उससे सुबूत न मांगते हुए आरोप लगाने वाले से सबूत मांगे जाने चाहिए। लेकिन यहां उल्टी गंगा बह रह रही है। कोर्ट ने कहा कि महिला पार्षद ने सक्षम अधिकारी के समक्ष ही दस्तावेज जमा करवाकर कास्ट सर्टिफिकेट बनवाया होगा। जब महिला ने दस्तावेज जमा किए होंगे तो सक्षम अधिकारी द्वारा उसकी जांच करके ही यह सर्टिफिकेट जारी हुआ होगा। फिर ऐसे में कैसे उस सक्षम अधिकारी की कलम को बिना जांच के ही खारिज किया जा सकता है। क्या है पूरा मामला दरअसल 29 अप्रैल को संभागीय कमिश्नर अभय वर्मा ने जबलपुर से भाजपा से महिला पार्षद कविता रैकवार की पार्षदी सिर्फ इसलिए शून्य कर दी थी क्योंकि महिला पर फर्जी तरीके से जाति प्रमाण पत्र बनाने का आरोप लगा था। जबलपुर के वार्ड क्रमांक 24 हनुमानताल वार्ड  पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) महिला के लिए आरक्षित था, जहां से साल 2022 के नगर निगम चुनाव में बीजेपी की कविता रैकवार चुनाव जीती थी। चुनाव जीतने के बाद किसी ने कविता रैकवार के जाति प्रमाण पत्र को लेकर शिकायत कर दी थी। शिकायत में कहा गया था कि कविता रैकवार सामान्य वर्ग से आती है, लेकिन उसने ओबीसी का फर्जी सर्टिफिकेट बना चुनाव लड़ा था। शिकायत पर भोपाल की उच्च स्तरीय कमेटी ने जांच कर महिला से उसके ओबीसी होने की सबूत मांगे और उसके बाद उसके सर्टिफिकेट को ही फर्जी बता दिया। इसी आधार पर संभागीय कमिश्नर ने महिला की पार्षदी को शून्य कर दिया। दरअसल कविता रैकवार महाराष्ट्र की रहने वाली है और उनकी शादी जबलपुर में हुई थी जो कि ओबीसी वर्ग से आते हैं। लेकिन शिकायतकर्ता कहना है की कविता रैकवार के पति ओबीसी से है लेकिन कविता रैकवार सामान्य वर्ग से आती है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 15

सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व अवकाश को महिलाओं का संवैधानिक अधिकार बताया, अब तीसरे बच्चे के जन्म पर भी पूरा मातृत्व अवकाश मिलेगा

नई दिल्ली देशभर की कामकाजी महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राहत भरा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने  साफ किया कि मातृत्व अवकाश (मैटरनिटी लीव) केवल सामाजिक न्याय या सद्भावना का विषय नहीं, बल्कि महिलाओं का संवैधानिक अधिकार है. अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें एक सरकारी शिक्षिका को तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश (मैटरनिटी लीव) देने से इनकार कर दिया गया था. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि मातृत्व अवकाश का मकसद महिला कर्मचारियों को सामाजिक न्याय दिलाना है ताकि वे बच्चे को जन्म देने के बाद न केवल जीवित रह सकें, बल्कि अपनी ऊर्जा दोबारा प्राप्त कर सकें, शिशु का पालन-पोषण कर सकें और अपने कार्यकौशल को बनाए रख सकें. तमिलनाडु की एक महिला सरकारी कर्मचारी के उमादेवी की अर्जी पर जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने यह आदेश पारित किया है. महिला ने पुनर्विवाह के बाद बच्चे को जन्म दिया था. लेकिन उसके महकमे के आला अधिकारियों ने उसे मातृत्व अवकाश से वंचित रखने का आदेश दिया, जिसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. कोर्ट ने तमिलनाडु की एक सरकारी महिला कर्मचारी की याचिका पर यह फैसला सुनाया. महिला का अपनी दूसरी शादी से एक बच्चा था. महिला को यह कहकर मैटरनिटी लीव नहीं दी गई थी कि उसके अपनी पहली शादी से पहले से ही दो बच्चे थे. तमिलनाडु राज्य में नियम है कि मातृत्व लाभ केवल पहले दो बच्चों के लिए ही होगा. याचिका में महिला ने कहा था कि पहली शादी से पैदा हुए बच्चों को लेकर भी उन्हें मैटरनिटी लीव का लाभ नहीं मिला था. उनके वकील केव मुथुकुमार ने कहा कि उन्होंने दूसरी शादी के बाद ही सरकारी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था. बता दें कि मातृत्व अवकाश से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में मातृत्व लाभ अधिनियम में संशोधन कर 12 सप्ताह की छुट्टी को बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया था. सभी महिला कर्मचारियों कोपहले और दूसरे बच्चे के लिए मैटरनिटी लीव दी जाती है. बच्चा गोद लेने वाली माताएं भी 12 सप्ताह के मातृत्व अवकाश की हकदार हैं. यह बच्चे को सौंपे जाने की तारीख से शुरू होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में मातृत्व अवकाश के अधिकार पर जोर दिया है. एक मामले में यह कहा गया है कि मातृत्व अवकाश सभी महिला कर्मचारियों का अधिकार है, चाहे उनकी नौकरी कैसी भी हो. Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 17