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निशिकांत दुबे के बयान पर बढा विवाद, SC बोला आपको हमारी अनुमति की नहीं, आपको अटॉर्नी जनरल से मंजूरी लेनी होगी

नई दिल्ली बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के सुप्रीम कोर्ट पर दिए बयान से बवाल मचा है. सोमवार को दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान वकील ने कहा, इस कोर्ट के बारे में और CJI के खिलाफ बयान दिए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष निशिकांत दुबे के बयानों का भी उल्लेख किया गया. इस पर जस्टिस बीआर गवई ने पूछा कि आप क्या चाहते हैं? इस पर वकील ने कहा, मैं अवमानना ​​का केस दर्ज करवाना चाहता हूं. जस्टिस गवई ने दोटूक जवाब दिया और कहा, तो आप इसे दाखिल कीजिए. आपको हमारी अनुमति की जरूरत नहीं है. आपको अटॉर्नी जनरल से मंजूरी लेनी होगी. इससे पहले अधिवक्ता नरेंद्र मिश्रा की तरफ से CJI और सुप्रीम कोर्ट के जजों को पत्र लिखा गया था. इस याचिका में निशिकांत के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग की गई थी. पत्र में कहा गया था कि दुबे द्वारा देश के सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ दिए गए सार्वजनिक बयान अपमानजनक और भड़काऊ हैं. ये बयान झूठे, लापरवाह और दुर्भावनापूर्ण हैं, और ये आपराधिक अवमानना ​​के बराबर हैं. ये बयान न्यायपालिका को डराने, सार्वजनिक अव्यवस्था को भड़काने और संविधान की रक्षा करने वाली संस्था को बदनाम करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है. दुबे ने शीर्ष अदालत को निशाना बनाते हुए कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद एवं विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना पर निशाना साधते हुए उन्हें देश में ‘सिविल वॉर’ के लिए जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि बीजेपी ने दुबे के बयान से खुद को अलग कर लिया। लेकिन कानून के जानकार इसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के तौर देख रहे हैं। बहरहाल, इस मामले में सुप्रीम का रुख चाहे जो भी हो, लेकिन शीर्ष कोर्ट के अवमानना के मामले पहले भी सामने आए हैं जिसमें कोर्ट ने एक्शन लिया। आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के पांच हाई प्रोफाइल मामले कौन से हैं? 1. बाबा रामदेव मामला (2024) बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद ने एलोपैथी और आधुनिक चिकित्सा के खिलाफ कई विवादित विज्ञापन दिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विज्ञापन और बयान रोकने का आदेश दिया। रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया और निगेटिव विज्ञापन देना जारी रखा। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अवमानना का नोटिस जारी किया। रामदेव और बालकृष्ण ने अदालत में बिना शर्त माफी मांगने का हलफनामा दाखिल किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। 2. प्रशांत भूषण मामला (2020) सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील और सोशल एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने जुलाई 2020 में ट्विटर पर दो ट्वीट किए। एक में उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को बिना हेलमेट और मास्क के हार्ले डेविडसन बाइक पर बैठे हुए दिखाया और लिखा कि जब देश में लॉकडाउन था, तब CJI छुट्टी पर हैं। दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा कि पिछले 6 वर्षों में भारत की शीर्ष कोर्ट ने लोकतंत्र को कमजोर करने में भूमिका निभाई है। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और प्रशांत भूषण के खिलाफ क्रिमिनल कंटेम्प्ट की कार्यवाही शुरू की। प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से इनकार कर दिया और कहा कि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका की गरिमा और विश्वास बनाए रखना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को दोषी पाया और ₹1 जुर्माना लगाया। प्रशांत भूषण ने बाद में जुर्माना भर दिया। 3. विजय माल्या मामला (2017) विजय माल्या किंगफिशर एयरलाइंस और कई बैंकों से लिए गए हजारों करोड़ रुपये के कर्ज़ विवाद के बाद भारत से भाग गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि माल्या किसी भी तरह की संपत्ति का हस्तांतरण नहीं करेंगे। इसके बावजूद, माल्या ने अपने बच्चों के बैंक अकाउंट में 40 मिलियन डॉलर ट्रांसफर कर दिए। सुप्रीम कोर्ट ने विजय माल्या को जानबूझकर आदेश की अवहेलना करने का दोषी माना। कोर्ट ने माल्या को अवमानना का अपराधी करार दिया था। 4. जस्टिस सी. एस. कर्णन मामला (2017) कलकत्ता हाई कोर्ट के तत्कालीन जज सी.एस. कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के 20 जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करते हुए सार्वजनिक रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाए और अदालत के समन को नज़रअंदाज़ किया। सुप्रीम कोर्ट ने सात सीनियर जजों की बेंच गठित कर कर्णन के खिलाफ अवमानना की सुनवाई की। कर्णन लगातार कोर्ट में पेश नहीं हुए और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयान देते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने जेल की सजासुनाई। 5. अरुंधति रॉय मामला (2002) प्रसिद्ध लेखिका और सोशल एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय ने नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में बयान देते हुए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की आलोचना की, जिसमें नर्मदा डैम परियोजना को हरी झंडी दी गई थी। उन्होंने एक लेख और प्रेस वक्तव्य में कहा कि कोर्ट ने गरीबों के अधिकारों की अनदेखी की है। सुप्रीम कोर्ट ने अरुंधति रॉय के बयान को 'न्यायपालिका की अवमानना' माना और उन्हें तलब किया। रॉय ने अपने बयान पर खेद नहीं जताया और अपने विचारों को सही बताया। कोर्ट ने अरुंधति रॉय को एक दिन जेल और ₹2000 जुर्माना की सजा दी। पत्र में CJI से बयानों का स्वतः संज्ञान लेने और आपराधिक अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया गया था. Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) … Read more

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आपसी रजामंदी से तलाक के बाद भी पत्नी को मिलेगा भरण-पोषण

बिलासपुर  पति पत्नी आपसी सहमति से तलाक ले रहे है तो भी पति को पत्नी का भरण पोषण देना होगा। ये फैसला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल ने तलाक और भरण पोषण के मामले में सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि जब तक तलाकशुदा पत्नी की दूसरी शादी नहीं हो जाती, वह भरण-पोषण की हकदार होती है। यह पति की नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी पूर्व पत्नी को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करे। इस आदेश के साथ ही कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति के बाद भी पति को भरण-पोषण के लिए भत्ता देना होगा। हाईकोर्ट ने इस मामले में फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए पति की याचिका को खारिज कर दी है। पीड़िता ने लगाई थी याचिका दरअसल, मुंगेली जिले के एक युवक और युवती की शादी 12 जून 2020 को हुई थी। कुछ ही समय बाद उनके बीच विवाद शुरू हो गया। जिसके बाद महिला ने आरोप लगाया कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है और घर से निकाल दिया गया है। 27 जून 2023 को महिला ने मुंगेली के फैमिली कोर्ट में 15,000 प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग करते हुए परिवाद दायर की। उसने बताया कि उसका पति ट्रक ड्राइवर है और खेती से भी सालाना दो लाख रुपए की कमाई होती है। प्रतिमाह 3000 गुजारा भत्ता देने फैमिली कोर्ट का आदेश युवक ने कोर्ट में दावा किया कि पत्नी बिना कारण ससुराल छोड़ चुकी है। जिसके बाद दोनों का आपसी सहमति से तलाक 20 फरवरी 2023 को हो चुका है। इसलिए वह किसी भी तरह से भत्ता देने का हकदार नहीं है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने अक्टूबर 2023 में महिला को प्रतिमाह 3,000 रुपए भरण-पोषण देने का आदेश दिया। फैमिली कोर्ट के आदेश को दी चुनौती, याचिका खारिज युवक ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि महिला ने दूसरी शादी कर ली है और अब भत्ते की हकदार नहीं है। इसके समर्थन में प्रकाश ने एक कथित पंचनामा और कवरिंग लेटर दाखिल किया, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे कानूनी रूप से अप्रासंगिक बताया, क्योंकि वह अभिप्रमाणित नहीं है। जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि, तलाकशुदा पत्नी, जब तक वह पुनर्विवाहित नहीं हो जाती, वह भरण-पोषण की हकदार होती है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 7

मध्य प्रदेश में अब जमानत मिलने के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई, अब अपराधियों को आसानी से जमानत नहीं मिल पाएगी

इंदौर  मध्य प्रदेश में अब जमानत मिलने के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. अब अपराधियों को आसानी से जमानत नहीं मिल पाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने जमानत को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट समेत सभी खंडपीठ के लिए फार्मेट जारी किया है. हाईकोर्ट में अब जमानत याचिका लगाने वाले संबंधित व्यक्ति को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी भी कोर्ट के सामने रखनी पड़ेगी. सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश से जुड़े जमानत के मामलों में यह महत्वपूर्ण आदेश दिया है. 1 मई से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी. जमानत देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर समेत इंदौर और ग्वालियर खंडपीठ को जमानत याचिका या अलग-अलग तरह के मामलों की सुनवाई करने को लेकर एक फॉर्मेट जारी किया है. इसके चलते जिस भी व्यक्ति को किसी मामले में सजा हो गई है या फिर वह जमानत या अग्रिम जमानत को लेकर कोर्ट के समक्ष याचिका लगता है, तो उसे अपने पिछले आपराधिक रिकॉर्ड की पूरी जानकारी जमानत याचिका के साथ कोर्ट के सामने प्रस्तुत करनी होगी. इसके बाद कोर्ट उस पूरे मामले में सुनवाई कर तय करेगा कि जमानत दी जाए या नहीं. अपराधियों को ऐसे मिल जाता था फायदा अभी तक जो भी व्यक्ति अग्रिम जमानत, जमानत या सजा पर रोक के लिए याचिका कोर्ट के सामने प्रस्तुत करता है तो कोर्ट संबंधित थाना पुलिस को निर्देश जारी कर उनसे संबंधित जानकारी मांगती है. जिसके चलते पुलिस कई बार इस तरह की जानकारी कोर्ट के समक्ष तय समय में उपलब्ध नहीं करवा पाती है. जिसका फायदा संबंधित आरोपी को हो जाता है और उसे कई बार आसानी से जमानत मिल जाती है. ऐसे में कई अपराधी ऐसे भी होते हैं जिनके पिछले आपराधिक रिकॉर्ड में गंभीर मामले दर्ज होते हैं. इंदौर के कुख्यात गुंडे को मिल गई थी जमानत बता दें कि पिछले दिनों इंदौर के एक कुख्यात गुंडे हेमंत यादव पर तकरीबन एक दर्जन से अधिक प्रकरण दर्ज थे लेकिन पुलिस ने हेमंत यादव से संबंधित जानकारियां कोर्ट के सामने प्रस्तुत नहीं की. जिसके चलते उसे आसानी से सजा के एक मामले में जमानत मिल गई. इस तरह की घटनाओं को देखते हुए अब सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर समेत इंदौर और ग्वालियर खंडपीठ को नए फॉर्मेट पर सुनवाई करने के आदेश दिए हैं. 1 मई से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी. यह व्यवस्था लागू होने के बाद कुख्यात आरोपियों को हाईकोर्ट से आसानी से जमानत नहीं मिल पाएगी. Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 6

मध्यप्रदेश में 9 साल बाद भी स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए उपकरण खरीदी नहीं होने पर हाईकोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया

 जबलपुर मध्यप्रदेश में 9 साल बाद भी स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए उपकरण खरीदी नहीं होने पर हाईकोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है। हाईकोर्ट ने तुरंत टेंडर जारी कर कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए उपकरण खरीदी के निर्देश दिए हैं। शासन की ओर से 6 मई को टेंडर खोलने की अंडरटेकिंग दी गई है। मेडिकल एजुकेशन विभाग के प्रमुख सचिव और मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य सेवा निगम के एमडी कोर्ट में हाजिर हुए। पिछली सुनवाई में हाइकोर्ट ने स्वास्थ्य सेवा निगम के एमडी और चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव को तलब किया था। बता दें कि 84 करोड रुपए मिलने के बाद भी 9 साल में जबलपुर स्थित स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में उपकरण नहीं आ पाए है। तीन बार टेंडर बुलाकर निरस्त कर दिया गया था। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की बैंच में सुनवाई हुई हैं। अब 13 मई को मामले की अगली सुनवाई होगी। जबलपुर निवासी एडवोकेट विकास महावर ने मामले में याचिका लगाई है। याचिका में जबलपुर स्थित स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में पर्याप्त साधन नहीं होने की बात कही है। याचिका में कहा गया उपकरण के अभाव में पीड़ितों को पर्याप्त इलाज नहीं मिल पा रहा है। खरीदी के लिए 84 करोड़ रुपए मिलने के बाद खरीदी नहीं की गई। उपकरण खरीदी के लिए साल 2016 में 84 करोड़ रुपए मिले थे। पिछली सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से बताया गया था कि तकनीकि कारण से दो-तीन बार टेंडर प्रक्रिया को निरस्त किया गया है। उपकरण खरीदी मप्र लोक सेवा स्वास्थ्य निगम के द्वारा की जानी है। युगलपीठ ने मप्र लोक सेवा स्वास्थ्य निगम के एमडी को अनावेदक बनाने के निर्देश याचिकाकर्ता को दिए थे। टेंडर किन कारणों से निरस्त किये गये थे, इस संबंध में जानकारी प्रदान करने लिए स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव मप्र लोक सेवा स्वास्थ्य निगम के एमडी को युगलपीठ ने व्यक्तिगत रूप से तलब किया गया था। याचिका की सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर युगलपीठ को बताया कि पूर्व में जारी टेंडर में एक-दो प्रतिभागी ने हिस्सा लिया था। जिसके कारण उन्हें निरस्त किया गया है। तकनीकी बोली 29 अप्रैल को खोली जानी है, जिसमें जबलपुर केन्द्र के लिए उपकरण एवं मशीन भी जोड़ दी गई है। लोक स्वास्थ्य सेवा निगम के प्रबंध निदेशक की तरफ से बताया गया कि टेंडर 6 मई को खोलना संभव हो पाएगा। युगल पीठ ने सुनवाई के बाद अपने आदेश में उक्त बोली में अंतिम निर्णय लेने के आदेश जारी करते हुए अगली सुनवाई 13 मई को निर्धारित की गई है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 6

ग्वालियर : हाईकोर्ट ने नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त विवेक कुमार सिंह का गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया

ग्वालियर ग्वालियर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त विवेक कुमार सिंह का गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया है। यदि 5 मई को उपस्थित नहीं होते हैं तो उनको गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश करना होगा। लोकायुक्त पुलिस ने नगर निगम के जल प्रदाय घोटाले में दोषमुक्त हुए आरोपियों के खिलाफ अपील दायर की है, जिसमें 8 आरोपी उपस्थित हो गए, लेकिन तत्कालीन नगर निगम आयुक्त उपस्थित नहीं हुए हैं। कोर्ट ने तीन आरोपियों को सजा सुनाई विशेष सत्र न्यायालय ने 29 नवंबर 2021 को नगर निगम के जल प्रदाय विभाग में हुए घोटाले के मामले में फैसला सुनाया। कोर्ट ने तीन आरोपियों को सजा सुनाई। तत्कालीन निगमायुक्त विवेक सिंह, केके श्रीवास्तव, आरके बत्रा, कुशलता शर्मा, हरि सिंह खेनवार, सत्येंद्र सिंह भदौरिया, मोहित जैन, सुनील गुप्ता, रजत जैन को दोषमुक्त कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की है। हाईकोर्ट ने अपील सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है, नोटिस जारी कर आरोपियों को तलब किया है। लोकायुक्त पुलिस के अधिवक्ता सुशील चतुर्वेदी ने बताया कि विचारण न्यायालय ने साक्ष्य व गवाही को नहीं देखा है। निगमायुक्त ने अपने अधिकारों का हस्तांतरण कर दिया था, लेकिन उनके संज्ञान में पूरा मामला था। इस पूरे घोटाले में वह भी जिम्मेदार है। विचारण न्यायालय ने फैसला देने में गलती की है। इसे निरस्त किया जाए। क्या है मामला दरअसल नगर निगम के जल प्रदाय विभाग में 2004-05 में 2 करोड़ रुपए से अधिक व्यय किया गया। 1805 नस्तियां बनाई गई। इन नस्तियों में 1.69 करोड़ रुपए भुगतान शेष पाया गया। इसकी शिकायत सुधीर कुशवाह ने लोकायुक्त में की। पुलिस ने इस मामले की जांच की तो जल प्रदाय विभाग में घोटाला सामने आया। अलग-अलग धाराओं में केस दर्ज कर तत्कालीन निगमायुक्त विवेक सिंह सहित 12 आरोपियों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सहित अन्य धाराओं में केस दर्ज किया गया। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 7

सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किये, यदि कोई नवजात शिशु चोरी होता है तो अस्पतालों का लाइसेंस रद्द

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी नवजात बच्चे को हॉस्पिटल से चुराया जाता है तो सबसे पहले उस अस्पताल का लाइसेंस सस्पेंड होना चाहिए. कोर्ट ने यह टिप्पणी दिल्ली- एनसीआर में नवजात बच्चों की तस्करी के गैंग के पर्दाफाश से जुड़ी खबर पर संज्ञान लेते हुए की. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के बच्चों की तस्करी के मामले में आदेश सुनाया और दिल्ली में इस गैंग के पकड़े जाने की घटना का जिक्र किया है. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली गैंग के पर्दाफाश की घटना अपने आप मे हतप्रभ कर देने वाली है और कोर्ट के दखल की जरूरत है. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से इस बारे में स्थिति जांच रिपोर्ट भी तलब की है. कोर्ट ने पुलिस से पूछा है कि दिल्ली के अंदर और बाहर से सक्रिय इस तरह के बच्चा चोर गिरोहों से निपटने के लिए उनकी ओर से क्या कदम उठाए जा रहे हैं? कोर्ट ने स्वतः संज्ञान के मामले पर अगली सुनवाई 21 अप्रैल को तय कर दी है. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच अस्पतालों से बच्चा चोरी करने वाले गिरोह से जुड़े एक मामले में जमानत को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सभी आरोपियों को निचली अदालत में सरेंडर करने को कहा. साथ ही सीजेएम वाराणसी और एसीजेएम वाराणसी को निर्देश दिया कि दो सप्ताह के भीतर सत्र न्यायालय में मामले दर्ज किया जाए और एक सप्ताह के भीतर चार्ज फ्रेम किया जाए. इसके अलावा इस मामले से जुड़े कुछ आरोपी फरार हैं तो उनके खिलाफ ट्रायल कोर्ट गैर जमानती वारंट जारी किया जाए. साथ ही कोर्ट ने तस्करी किए गए बच्चों को RTE के तहत स्कूल में भर्ती कराया जाता है और उन्हें शिक्षा प्रदान करना जारी रखता है. ट्रायल कोर्ट बीएनएसएस और यूपी राज्य कानून के तहत मुआवजे के संबंध में आदेश पारित करने के लिए भी निर्देश दिया. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाई कोर्ट को बाल तस्करी के मामलों में लंबित मुकदमे की स्थिति की जानकारी लेने का निर्देश देते हुए कहा कि लंबित मुकदमों को छह महीने में परीक्षण पूरा करने और मामलों के प्रतिदिन सुनवाई के आधार पर किए जाएंगे. कोर्ट ने यह भी कहा कि हमारे द्वारा जारी निर्देशों को लागू करने में बरती गई किसी भी ढिलाई को गंभीरता से लिया जाएगा और उसे अवमानना के रूप में माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाल तस्करी के मामलों से निपटने के तरीके को लेकर यूपी के प्रशासन की आलोचना की और ऐसे अपराधों को रोकने के लिए राज्यों को सख्त दिशा-निर्देश दिए. बेंच ने निचली अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी करने का आदेश दिया. साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिया कि यदि किसी नवजात की तस्करी होती है तो अस्पतालों के लाइसेंस निलंबित कर दिए जाएं. शीर्ष अदालत ने कहा, देश भर के हाई कोर्ट को बाल तस्करी के मामलों में लंबित मुकदमों की स्थिति के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया जाता है. इसके बाद 6 महीने में मुकदमे को पूरा करने और दिन-प्रतिदिन सुनवाई करने के निर्देश जारी किए जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें तस्करी करके लाए गए एक बच्चे को उत्तर प्रदेश के एक दंपत्ति को सौंप दिया गया था जो बेटा चाहते थे. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी थी. आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले से निपटने के तरीके को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों को फटकार लगाई. बेंच ने कहा, आरोपी को बेटे की चाहत थी और उसने 4 लाख रुपये में बेटा खरीद लिया. अगर आप बेटे की चाहत रखते हैं तो आप तस्करी किए गए बच्चे को नहीं खरीद सकते. वो जानता था कि बच्चा चोरी हुआ है. शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने जमानत आवेदनों पर ऐसी कार्रवाई की, जिसके कारण कई आरोपी फरार हो गए. अदालत ने कहा, ये आरोपी समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. जमानत देते समय हाई कोर्ट से कम से कम यह अपेक्षित था कि वो हर सप्ताह पुलिस थाने में उपस्थिति दर्ज कराने की शर्त लगाता. पुलिस सभी आरोपियों का पता लगाने में विफल रही. सरकार की खिंचाई करते हुए जजों ने कहा, हम पूरी तरह से निराश हैं… कोई अपील क्यों नहीं की गई? कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई. 'अस्पतालों का लाइसेंस रद्द होगा' बाल तस्करी के मामलों को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई नवजात शिशु चोरी होता है तो अस्पतालों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाना चाहिए. अदालत ने आदेश दिया, यदि किसी अस्पताल से नवजात शिशु की तस्करी की जाती है तो पहला कदम ऐसे अस्पतालों का लाइसेंस निलंबित करना होना चाहिए. यदि कोई महिला अस्पताल में बच्चे को जन्म देने आती है और बच्चा चोरी हो जाता है, तो पहला कदम लाइसेंस निलंबित करना होना चाहिए. बेंच ने चेतावनी दी कि किसी भी प्रकार की लापरवाही को गंभीरता से लिया जाएगा. इसे न्यायालय की अवमानना ​​माना जाएगा.   Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 10

CG हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, संविदा कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता

बिलासपुर  संविदा कर्मियों के लिए हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि केवल संविदा कर्मचारी होने के आधार पर मातृत्व अवकाश (Maternity leave) का वेतन देने से इनकार नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने स्टाफ नर्स को अवकाश अवधि का वेतन देने के निर्देश दिए हैं. न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की एकल पीठ ने राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता द्वारा दायर मातृत्व अवकाश के वेतन संबंधी दावा पर तीन माह के भीतर नियमानुसार निर्णय लें. न्यायालय ने कहा कि मातृत्व और शिशु की गरिमा के अधिकार को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है. इसे प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छा पर निर्भर नहीं किया जा जा सकता. कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा मातृत्व अवकाश वेतन की मांग पर नियमानुसार तीन माह के माह के भीतर निर्णय लिया जाए. याचिकाकर्ता राखी वर्मा, जिला अस्पताल कबीरधाम में स्टाफ नर्स के रूप में संविदा पर कार्यरत हैं. उन्होंने 16 जनवरी 2024 से 16 जुलाई 2024 तक मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था. इसे स्वीकृत कर लिया गया. उन्होंने 21 जनवरी 2024 को एक कन्या को जन्म दिया और 14 जुलाई 2024 को पुनः ड्यूटी ज्वाइन की. इसके बावजूद, उन्हें मातृत्व अवधि का वेतन नहीं दिया गया. इससे उन्हें और उनके नवजात को आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ा. उन्होंने 25 फरवरी 2025 को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को वेतन की मांग का आवेदन प्रस्तुत किया. कार्रवाई न होने पर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रीकांत कौशिक ने तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 2010 के नियम 38 के अंतर्गत मातृत्व अवकाश एक विधिक अधिकार है, जो संविदा कर्मचारियों पर भी समान रूप से लागू होता है. याचिकाकर्ता की ओर से पूर्व में दिए गए कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें संविदा कर्मचारियों को मातृत्व लाभ दिये जाने की पुष्टि की गई थी. उन्होंने यह भी तर्क रखा कि वेतन न देना अनुच्छेद 14 और 16 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि यह स्थायी व अस्थायी कर्मचारियों के मध्य अनुचित भेदभाव को जन्म देता है. राज्य की ओर से महाधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता संविदा पर नियुक्त थीं और उन्हें स्थायी कर्मचारियों की भांति लाभ प्राप्त करने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना है, ताकि महिला व उसके बच्चे का पूर्ण व स्वस्थ विकास हो हो सके. संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार में मातृत्व का अधिकार और प्रत्येक बच्चे के पूर्ण विकास का अधिकार भी सम्मिलित है.सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख करते हुए जस्टिस एके प्रसाद की सिंगल बेंच ने कहा कि मातृत्व लाभ अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है. और इसे केवल नियमित कर्मचारियों तक सीमित नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सिविल सेवा अवकाश नियम, 2010 के नियम 38 एवं अन्य लागू दिशा-निर्देशों के अनुसार शासन को विचार करने और आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से तीन माह के भीतर इस संबन्ध में उपयुक्त निर्णय पारित करने के निर्देश दिए. Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 12