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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा- फिलहाल EVM से कोई डेटा डिलीट न करें और ना ही रीलोड करें

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ईवीएम के सत्यापन के संबंध में नीति बनाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. याचिका में चुनाव आयोग को ईवीएम की मेमोरी/माइक्रोकंट्रोलर की जांच और सत्यापन के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है. इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) से जवाब मांगा है और आदेश दिया है कि फिलहाल EVM से कोई डेटा डिलीट न करें और ना ही कोई डेटा रीलोड करें. दरअसल, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा कोर्ट में ईवीएम के सत्यापन को लेकर याचिका दायर की गई थी. इस पर मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते कि ईवीएम से छेड़छाड़ हो, हम चाहते हैं कि शायद इंजीनियर यह बता सके कि कोई छेड़छाड़ हुई है या नहीं. हमारी परेशानी यह है कि हमने इसे सही तरीके से नहीं बताया. इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि जिस तरह से आप चाहते हैं, हम उसे पूरा करेंगे. कोर्ट ने आदेश दिया कि वे (ईसीआई) इसे लागू करने की कोशिश कर रहे हैं. आप में से कौन सही है, हमें नहीं पता. हम सिर्फ पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. कोर्ट ने चुनाव आयोग से इस मुद्दे पर 15 दिनों में जवाब दाखिल करने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि हम करण सिंह दलाल और एमए 40/2025 की याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं. हम विस्तृत प्रक्रिया भी नहीं चाहते. हम चाहते हैं कि आप आएं और प्रमाणित करें कि देखिए यह किया जा रहा है. डेटा को मिटाएं या फिर से लोड ना करें. आप बस यही करेंगे कि कोई आकर प्रमाणित करेगा. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई हारने वाला उम्मीदवार स्पष्टीकारण चाहता है तो इस पर इंजीनियर ही स्पष्टीकरण दे सकता है कि ईवीएम से छेड़छाड़ हुई है या नहीं. हम चाहते हैं कि अगर किसी को कोई संदेह है तो वो दूर हो. यह विरोधात्मक नहीं है. कई बार धारणाएं अलग-अलग होती हैं, जो हम बताना चाहते हैं, वह हम नहीं बता पाते. हम नहीं चाहते हैं कि ईवीएम से छेड़छाड़ हो, हम चाहते हैं कि शायद इंजीनियरिंग यह बता सके कि कोई छेड़छाड़ हुई है या नहीं. आप में से कौन सही है, हमें नहीं पता. हम सिर्फ पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. सुनवाई के दौरान एडीआर की ओर से पेश हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा, "हम चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार चुनाव आयोग को जो प्रक्रिया अपनानी है, वह उनके मानक संचालन प्रोटोकॉल के अनुरूप हो. हम चाहते हैं कि कोई व्यक्ति ईवीएम के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की जांच करे, ताकि यह पता चल सके कि सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर में किसी तरह की छेड़छाड़ की गई है या नहीं. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अपने पहले के आदेश को स्पष्ट करते हुए कहा, "हम नहीं चाहते थे कि मतगणना तक कोई गड़बड़ी हो (पहले के आदेश के माध्यम से) साथ ही, हम यह भी देखना चाहते थे कि क्या किसी को कोई संदेह है. हम नहीं चाहते थे कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जाए, हम चाहते थे कि शायद इंजीनियरिंग यह बता सके कि क्या कोई छेड़छाड़ हुई है." Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 20

सुप्रीम कोर्ट ने ‘डेड बॉडी के साथ यौन संबंध बनाना ‘बलात्कार’ अपराध की दलील खारिज की

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि दंड कानून नेक्रोफीलिया को अपराध नहीं मानते, इसलिए वह हाईकोर्ट के आंशिक बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, जिसमें आरोपी ने मृतक की हत्या करने के बाद उसके शव के साथ यौन संबंध बनाए थे। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी को मृत शरीर के साथ यौन संबंध बनाने के लिए बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया गया, लेकिन हत्या के अपराध के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी। यहां राज्य सरकार ने वर्तमान एसएलपी दायर की।  हाई कोर्ट ने शख्स को रेप के आरोप से बरी कर दिया था, लेकिन हत्या की सजा कायम रही। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) में नेक्रोफिलिया (Necrophilia) यानी शव के साथ कामुकता को अपराध नहीं माना गया है। कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले में कर्नाटक सरकार की ओर से अडिशनल एडवोकेट जनरल अमन पंवार ने तर्क दिया कि IPC की धारा 375(c) में 'शरीर' शब्द को मृत शरीर भी शामिल माना जाना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि रेप की परिभाषा के तहत प्रावधान में कहा गया है कि यदि कोई महिला सहमति नहीं दे सकती है तो इसे बलात्कार माना जाएगा। इसी तर्क के आधार पर मृत शरीर भी सहमति नहीं दे सकता, इसलिए यह अपराध बलात्कार की श्रेणी में आना चाहिए। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि नेक्रोफिलिया भारतीय दंड संहिता के तहत कोई अपराध नहीं है, इसलिए वह हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने को इच्छुक नहीं है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने क्या कहा था? कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि मृत शरीर के साथ यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता, क्योंकि IPC की धारा 375 और 377 केवल जीवित मनुष्यों पर लागू होती है। धारा 375 और 377 का गहराई से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि मृत शरीर को 'व्यक्ति' या 'मानव' नहीं माना जा सकता। इसलिए, इन धाराओं के तहत कोई अपराध नहीं बनता और आरोपी को IPC की धारा 376 के तहत सजा नहीं दी जा सकती। हाई कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि नेक्रोफिलिया एक गंभीर समस्या है और संसद को इसे अपराध घोषित करने के लिए कानून बनाना चाहिए। एक मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भी दिसंबर में कहा था कि किसी मृत महिला या बच्ची के साथ यौन अपराध किया जाता है तो उसे IPC की धारा 375 (बलात्कार) या POCSO अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। कानून में बदलाव की दरकार अस्पतालों और मुर्दाघरों में युवतियों के शवों के साथ यौन संबंध की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, लेकिन भारत में ऐसे मामलों के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। नेक्रोफिलिया एक मनो-यौन विकार (psychosexual disorder) है। यह सही समय है कि केंद्र सरकार मृत व्यक्ति, विशेषकर महिलाओं की गरिमा बनाए रखने के लिए IPC की धारा 377 में संशोधन करे और नेक्रोफिलिया को अपराध घोषित करे, जैसा कि यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में किया गया है। यह मामला भारतीय दंड संहिता में संशोधन की आवश्यकता को उजागर करता है ताकि मृत व्यक्ति की गरिमा और अधिकारों की रक्षा की जा सके। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 20

सुप्रीम कोर्ट जज का दावा- इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर मांग रहे थे बंद कमरे में माफी, बाहर निकलकर पलटे

नई दिल्ली इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने एक कार्यक्रम में मुसलमानों के लिए कठमुल्ला शब्द का इस्तेमाल किया था। इसके अलावा उन्होंने देश में बहुसंख्यकों के हिसाब से व्यवस्था चलने की बात कही थी। उनके इस बयान को लेकर जमकर विवाद हुआ तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका संज्ञान लिया। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम के सामने जस्टिस यादव व्यक्तिगत तौर पर पेश हुए थे। इस बीच कॉलेजियम के मेंबर रहे जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने कई अहम खुलासे किए हैं। उनका कहना है कि जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कॉलेजियम के साथ मीटिंग में कहा था कि मैं आप लोगों से माफी मांग लेता हूं। उन्होंने कहा कि मैं आपसे माफी मांगने के लिए तैयार हूं। इस पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि बंद कमरे में माफी मांगने का कोई मतलब नहीं है। ऐसा आपको सार्वजनिक तौर पर करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट से 31 जनवरी को रिटायर होने वाले जस्टिस रॉय ने कहा कि जस्टिस शेखर कुमार यादव ने सार्वजनिक माफी की बात को मान लिया था। वह यह कहते हुए मीटिंग से निकले थे, लेकिन आज तक माफी की मांग नहीं की। यही नहीं उन्होंने तो अपने एक जवाब में यहां तक कहा था कि मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। जस्टिस रॉय ने कहा कि ऐसा लगता है कि बाद में उनका विचार बदल गया। पहले तो वह सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने के लिए तैयार हो गए थे। जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने उनके इस व्यवहार को लेकर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा, 'ऐसा एक और वाकया हुआ था, जब एक जज ने ऐसा ही बयान दिया था। तब उन्होंने बाद में माफी मांग ली थी। जस्टिस यादव ने भी पब्लिक में माफी की बात कही, लेकिन अब तक ऐसा नहीं किया है। अब चीफ जस्टिस ने इन-हाउस इन्क्वॉयरी शुरू की है।' जस्टिस रॉय ने कहा, 'उन्होंने कॉलेजियम के सभी 5 जजों के सामने कहा था कि मैं आप सभी लोगों से माफी मांगता हूं। वह उस समय तैयार थे। लेकिन चीफ जस्टिस ने जब पब्लिक में माफी की मांग की तो वह तैयार हो गए। वहां से निकले तो फिर ऐसा नहीं किया।' समान नागरिक संहिता पर एक भाषण देते हुए जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विवादित बयान देते हुए कहा था कि देश का सिस्टम बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा। उन्होंने कहा था कि परिवार में आखिर जिस बात को ज्यादा लोग मानते हैं, वही होता है। इसके अलावा उन्होंने मुस्लिमों के लिए कठमुल्ला शब्द का इस्तेमाल किया था। इसी मामले पर उन्हें कॉलेजियम ने समन जारी किया था। बता दें कि जस्टिस शेखर यादव ने इश मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को जवाब दिया था। इसमें उन्होंने कहा था कि मैं अब भी अपने बयान पर कायम हूं। उनका कहना था कि मैंने अपना बयान जज के तौर पर नहीं बल्कि एक हिंदू के रूप में दिया था। इसलिए अदालत परिसर से बाहर कही गई कोई बात उनके जज रहने की आचार संहिता का उल्लंघन नहीं करती। इसके अलावा हाई कोर्ट की मर्यादा को भी इससे कोई नुकसान नहीं पहुंचता। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 11

कई ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को जारी किए गए जीएसटी ‘कारण बताओ नोटिस’ पर रोक लगाई: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कई ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को जारी किए गए 1.12 लाख करोड़ रुपये के वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) 'कारण बताओ नोटिस' पर रोक लगा दी, जिससे इस सेक्टर को अस्थायी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने मामले के अंतिम निपटारे तक डीजीजीआई द्वारा जारी सभी 'कारण बताओ नोटिस' के संबंध में आगे की सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी। मामले की अंतिम सुनवाई 18 मार्च को तय की गई है। फैसले के बाद, स्टॉक एक्सचेंजों पर इंट्रा-डे ट्रेड के दौरान डेल्टा कॉर्प और नाजारा टेक जैसी गेमिंग कंपनियों के शेयरों में 7 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई। ई-गेमिंग फेडरेशन (ईजीएफ) के सीईओ अनुराग सक्सेना ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई राहत का स्वागत किया। सक्सेना ने कहा, "यह सरकार और गेमिंग ऑपरेटर्स दोनों के लिए फायदेमंद है। गेमिंग ऑपरेटर्स के लिए जो जबरदस्ती की कार्रवाई का सामना कर रहे थे और सरकार के लिए जिसकी समयसीमा अब बढ़ाई जा सकती है। हम इस मुद्दे के निष्पक्ष और प्रगतिशील समाधान को लेकर आश्वस्त हैं, जिसके बाद हम गेमिंग सेक्टर में निवेश, रोजगार और वैल्यूएशन को अपनी पूरी क्षमता तक बढ़ते देखेंगे।" डीजीजीआई ने 2023 में गेमिंग कंपनियों को 71 नोटिस भेजे, जिसमें उन पर 2022-23 और 2023-24 के पहले सात महीनों के दौरान 1.12 लाख करोड़ रुपये के जीएसटी की चोरी करने का आरोप लगाया गया, जिसमें ब्याज और जुर्माना शामिल नहीं है। जीएसटी अधिनियम की धारा 74 के तहत नोटिस जारी किए गए थे, जो विभाग को कर मांग के 100 प्रतिशत तक का जुर्माना लगाने की अनुमति देता है और कुल देयता ब्याज सहित 2.3 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है। अगस्त 2023 में, जीएसटी परिषद ने कानून में संशोधन किया, जिसमें कहा गया कि दांव लगाने वाले सभी ऑनलाइन गेम, स्किल या चांस की परवाह किए बिना, उसी वर्ष 1 अक्टूबर से लगाए गए दांव के पूरे मूल्य पर 28 प्रतिशत की जीएसटी दर लगेगी, न कि सकल गेमिंग राजस्व पर।   Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 35

33% महिला आरक्षण कानून को चुनौती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को निरर्थक बताया

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने 33% महिला आरक्षण कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से शुक्रवार को इनकार कर दिया। अदालत ने उस याचिका को निरर्थक बताया जिसमें विधेयक को चुनौती दी गई थी, न कि अधिनियम को। दूसरी याचिका में इस मामले को लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने सहित अन्य उपाय तलाशने की मांग रखी गई, जिसे नकार दिया गया। एससी की बेंच ने कहा कि पहले भी संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का मुद्दा उठाया गया, मगर इसे कभी लागू नहीं किया जा सका। हालांकि, इस बार इसे परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने की शर्त पर लागू किया जा रहा है। महिला आरक्षण कानून क्या है? महिला आरक्षण अधिनियम (नारी शक्ति वंदन अधिनियम-2023) लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी यह नियम लागू होगा। इसका मतलब है कि लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी जाएंगी। हालांकि, पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित नहीं होंगी। मालूम हो कि जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद यह आरक्षण लागू होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित होंगी जिसके लिए परिसीमन किया जाएगा। यह आरक्षण 15 साल की अवधि के लिए मिलेगा। फिलहाल, लोकसभा की 131 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित की गई हैं। महिला आरक्षण कानून लागू होने के बाद इनमें से 43 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इन 43 सीटों को सदन में महिलाओं के लिए आरक्षित कुल सीटों का ही हिस्सा माना जाएगा। इसका मतलब है कि महिलाओं के लिए आरक्षित 181 सीटों में से 138 ऐसी होंगी, जिन पर किसी भी जाति की महिला उम्मीदवार होगी। साफ है कि इन सीटों पर उम्मीदवार पुरुष नहीं हो सकते हैं। मालूम हो कि यह गणना लोकसभा में सीटों की मौजूदा संख्या पर की गई है। परिसीमन के बाद इसमें बदलाव हो सकता है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 33

राजद नेता याचिका पर सुनवाई में की टिप्पणी, सुप्रीम कोर्ट ने माननीयों को सिखाया विरोधियों से बात करने का तरीका

नई दिल्ली। विधानसभाओं और संसद में लगातार हो रही कटुतापूर्ण कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को कहा कि ऐसा लगता है कि विधायक यह भूल गए हैं कि कड़ा विरोध जताते समय या विरोधियों की आलोचना करते समय कैसे सम्मानजनक व्यवहार किया जाए। यह टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन के सिंह की पीठ ने राजद नेता सुनील कुमार सिंह की रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान की। याचिका में बिहार विधान परिषद के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें बजट सत्र के दौरान कथित कदाचार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नकल करने के कारण उन्हें सदन से निष्कासित कर दिया गया था। सम्मान के साथ हो कटु आलोचना सुप्रीम कोर्ट ने सिंह की टिप्पणियों को प्रथम दृष्टया अस्वीकार करते हुए कहा कि सम्मानित सदनों के सदस्यों को दूसरों के कटु आलोचक होते हुए भी उनका सम्मान करना चाहिए। सुनील कुमार सिंह के वकील ए एम सिंघवी ने कहा कि भले ही मामला कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन चुनाव आयोग ने सिंह की खाली हुई सीट के लिए उपचुनाव की घोषणा की है और आशंका जताई है कि इससे भ्रम की स्थिति पैदा होगी। चुनाव पर रोक लगाने की मांग सिंघवी ने कहा कि अगर चुनाव होते हैं और कोई और निर्वाचित होता है और उसी समय सुप्रीम कोर्ट सिंह के निष्कासन को रद्द कर देता है, तो इससे एक ही सीट के लिए दो निर्वाचित उम्मीदवारों के होने की असंगत स्थिति पैदा होगी। उन्होंने अनुरोध किया कि सुप्रीम कोर्ट को इस महीने के अंत में होने वाले चुनावों पर रोक लगा देनी चाहिए। 'क्या आप ऐसी भाषा का समर्थन करते हैं?' सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव स्थगित करने से इनकार कर दिया, लेकिन कहा कि वह सिंह की रिट याचिका पर अंतिम सुनवाई 9 जनवरी को करेगा। सिंघवी ने कहा कि सदन के अंदर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यापक छूट दी गई है। पीठ ने कहा कि इस तरह से सदन के अंदर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल किया जाता है? आप (सिंघवी) भी संसद सदस्य हैं। क्या आप सदन के अंदर विरोधियों के खिलाफ ऐसी भाषा के इस्तेमाल का समर्थन करते हैं? सिंघवी ने कहा कि वह ऐसी भाषा का समर्थन नहीं करते हैं, लेकिन ऐसी भाषा के इस्तेमाल के लिए निष्कासन से विपक्ष की बेंच खाली हो जाएगी। एक अन्य एमएलसी की तरफ से भी इसी तरह की भाषा के इस्तेमाल के लिए, उन्हें केवल निलंबित किया गया था। लेकिन सिंह के मामले में, यह निष्कासन था। 26 जुलाई को किया गया था निष्कासित विधान परिषद की आचार समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिंह को हटाने की संस्तुति करते हुए कहा था कि "विपक्ष के मुख्य सचेतक होने के नाते उनकी विधायी जिम्मेदारी और नियमों और विनियमों का पालन दूसरों से अधिक होना चाहिए। लेकिन उनका व्यवहार इसके विपरीत था। वेल में आकर उन्होंने अनर्गल नारे लगाए, सदन की कार्यवाही में बाधा डाली। अध्यक्ष के निर्देश का अनादर किया। सदन के नेता के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। उन्हें अपमानित करने की कोशिश की और एक तरह से विधान परिषद की गरिमा को नुकसान पहुंचाया। रिपोर्ट के आधार पर सिंह को 26 जुलाई को निष्कासित कर दिया गया। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 18

निष्पक्ष व्यापार नियामक आयोग करेगा जांच, सुप्रीम कोर्ट ने अमेजन-फ्लिपकार्ट की याचिकाएं कर्नाटक हाईकोर्ट ने कीं ट्रांसफर

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ई-कॉमर्स कंपनियों अमेजन और फ्लिपकार्ट की सीसीआई (कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) जांच के खिलाफ दायर याचिकाओं को कर्नाटक उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइंया की पीठ ने कहा कि यदि स्थानांतरित याचिकाओं में से कुछ में दलीलें पूरी नहीं हुई हैं, तो मामले को देखते हुए न्यायाधीश दलीलें पूरी करने के लिए उचित समय दिया जाए। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि निष्पक्ष व्यापार नियामक 'भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई)' द्वारा याचिका दायर किए जाने के बाद, विभिन्न उच्च न्यायालयों में याचिकाएं दायर की गई हैं। जिस पर शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि इन याचिकाओं को कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया जाए। पीठ ने कहा, अगर इसके बाद किसी अन्य उच्च न्यायालय में इसी तरह की याचिकाएं दायर की जाती हैं, तो वे भी इस आदेश के अंतर्गत आएंगी।' पीठ ने माना कि रिट याचिका में जो मामला उठाया गया है, वो ही मामला कर्नाटक उच्च न्यायालय में दायर याचिका में है। ऐसे में पीठ ने सभी याचिकाएं कर्नाटक उच्च न्यायालय को स्थानांतरित करने का आदेश दिया। क्या है ये पूरा मामला भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने जनवरी 2020 में प्रतिस्पर्धा कानून 2002 के तहत एक जांच शुरू की थी। यह जांच दिल्ली व्यापार महासंघ की शिकायत पर शुरू की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों ने चुनिंदा विक्रेताओं को वरीयता दी, जिससे अन्य विक्रेताओं को नुकसान हुआ। महासंघ ने दावा किया कि जिन विक्रेताओं को फायदा पहुंचाया गया, वो ई-कॉमर्स कंपनियों से जुड़े हुए थे। प्रतिस्पर्धा आयोग की जांच के खिलाफ अमेजन और फ्लिपकार्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। हालांकि उच्च न्यायालय ने प्रतिस्पर्धा आयोग की जांच में दखल देने से इनकार कर दिया। अगस्त 2024 में आयोग ने जांच पूरी की और ये पाया कि ई-कॉमर्स कंपनियों  ने प्रतिस्पर्धा कानून का उल्लंघन किया था। हालांकि इसके बाद अमेजन और फ्लिपकार्ट के विक्रेताओं ने सीसीआई की जांच पर सवाल उठाते हुए देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में याचिकाएं दायर कीं। इस पर सीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में 24 याचिकाएं लंबित हैं। ऐसे में सुनवाई में देरी से बचने के लिए सभी याचिकाएं दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दी जाएं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 13 दिसंबर की सुनवाई में सभी याचिकाओं को दिल्ली उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने से इनकार कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को कर्नाटक उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने का आदेश दिया है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 28