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संजीव खन्ना, बीआर गवई के बाद सूर्यकांत 2025 में SC को मिलेंगे तीन चीफ जस्टिस और रिटायर होंगे सात जज

 नई दिल्ली नए साल 2025 में सुप्रीम कोर्ट तीन मुख्य न्यायाधीशों के नेतृत्व में काम करेगा. इस साल दो चीफ जस्टिस समेत सात जज रिटायर होंगे. मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त होंगे. जस्टिस खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट से 18 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट में आए थे. चीफ जस्टिस के रूप में उनका कार्यकाल 11 नवंबर 2024 से 13 मई 2025 तक होगा. सीजेआई खन्ना के बाद जस्टिस बी.आर गवई चीफ जस्टिस बनेंगे. वह अगले छह महीने यानी 23 नवंबर तक इस पद पर रहेंगे. इसी साल तीसरे चीफ जस्टिस सूर्यकांत बनेंगे. उनका कार्यकाल करीब सवा साल फरवरी 2027 तक होगा. इस साल 2025 में सेवानिवृत्त होने वाले अन्य पांच जजों में जस्टिस सी.टी. रवि कुमार सबसे पहले हैं. वो तीन साल से अधिक का कार्यकाल पूरा कर 5 जनवरी 2025 को रिटायर होंगे. जस्टिस रवि कुमार 31 अगस्त, 2021 को केरल हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में आए थे. इसके बाद जस्टिस हृषिकेश रॉय चार साल से अधिक का सेवाकाल पूरा कर 31 जनवरी को रिटायर होंगे. जस्टिस हृषिकेश रॉय गुवाहटी हाईकोर्ट और फिर केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे. जस्टिस रॉय 23 सितंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट आए थे. न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओक 24 मई, 2025 को अपना तीन साल से अधिक का सेवाकाल पूरा कर रिटायर होंगे. वह बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने फिर 2019 में कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाए. जस्टिस ओक 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट आए थे. जस्टिस ओक के रिटायरमेंट के अगले महीने जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी 9 जून, 2025 को रिटायर होंगी. वह 31 अगस्त 2021 को गुजरात हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट आईं थीं. इसके बाद जस्टिस सुधांशु धूलिया 9 अगस्त 2025 को सेवानिवृत्त होंगे. ये उत्तराखंड हाईकोर्ट से जनवरी 2021 में गुवाहटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त किए गए थे. जस्टिस धूलिया वहां से 9 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट आए थे. इसके बाद चीफ जस्टिस पद से जस्टिस बी.आर. गवई 23 नवंबर, 2025 को रिटायर होंगे. जस्टिस गवई बॉम्बे हाईकोर्ट से 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट आए. वो मई में चीफ जस्टिस बनेंगे और छह महीने से ज्यादा वक्त तक देश की सर्वोच्च न्यायपालिका का नेतृत्व करेंगे. सुप्रीम कोर्ट के कितने न्यायाधीश 2025 में होंगे रिटायर? जस्टिस सीटी रविकुमार साल 2025 में सबसे पहले जस्टिस सीटी रविकुमार रिटायर होंगे. उन्होंने 31 अगस्त 2021 में सुप्रीम कोर्ट में बतौर न्यायाधीश के तौर पर सेवा देना शुरू किया था. जस्टिस सीटी रविकुमार इसी हफ्ते 5 जनवरी को रिटायर हो रहे हैं. उन्होंने केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष, केरल न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष और केरल राज्य मध्यस्थता और सुलह केंद्र के अध्यक्ष सहित कई प्रमुख पदों पर काम किया है. बतौर न्यायाधीश उनके कुछ अहम फैसलों में पॉक्सो अधिनियम के अनुपालन से जुड़े मामलों पर महत्वपूर्ण फैसले, चुनावी वादों का सरकार के वित्त पर असर और गुरमेल सिंह मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 149 की व्याख्या शामिल है. हाल के फैसलों (2024) में, उन्होंने जुवेनाइल जस्टिस समय-सीमा और बाल हिरासत मामलों पर अहम फैसले लिए हैं. जस्टिस ऋषिकेष रॉय जस्टिस ऋषिकेष रॉय इस साल रिटायर होने पर दूसरे सुप्रीम कोर्ट जज होंगे. 31 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में उनका आखिरी दिन होगा. इससे पहले वह केरल हाईकोर्ट में बतौर चीफ जस्टिस कार्यरत थे. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना चीफ जस्टिस संजीव खन्ना इसी साल मई में रिटायर हो जाएंगे. उन्हें साल 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किया गया था. पिछले साल नवंबर में संजीव खन्ना शीर्ष न्यायालय के चीफ जस्टिस बने थे. उन्होंने एक ऐतिहासिक 7 न्यायाधीशों के बेंच के फैसले में अहम भूमिका निभाई थी. इस फैसले में बिना मुहर वाले मध्यस्थता समझौतों पर कानून को स्पष्ट किया था. बतौर न्यायाधीश चीफ जस्टिस संजीव खन्ना शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन केस (2023) में एक अहम संवैधानिक पीठ के फैसले में शामिल थे. इस फैसले में अनुच्छेद 142 के तहत तलाक के लिए एक वैध आधार की व्याख्या की थी. इसमें तय किसी गया था कि 'जब किसी शादी में जुड़ाव की कोई गुंजाइश न बच जाए' तो वह तलाक का आधार माना जा सकता है. इसके अलावा अन्ना मैथ्यूज बनाम भारत का सर्वोच्च न्यायालय (2023) मामले में, उन्होंने न्यायिक नियुक्तियों में पात्रता और उपयुक्तता के बीच महत्वपूर्ण अंतर को परिभाषित किया था. यह फैसला देते हुए कि पात्रता न्यायिक समीक्षा के अधीन है, उपयुक्तता इसके दायरे से बाहर है. जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका भी मई में रिटायर होंगे. 24 मई में सुप्रीम कोर्ट में उनका आखिरी दिन होगा. जस्टिस अभय बॉम्बे हाईकोर्ट में न्यायाधीश थे, इसके बाद वह कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने. साल 2021 में जस्टिस अभय सुप्रीम कोर्ट में जज बने थे. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी जस्टिस बेला एम त्रिवेदी भी इसी साल रिटायर होंगी. 9 जून 2025 को सुप्रीम कोर्ट में उनका आखिरी कार्यदिवस होगा. जस्टिस बेला 2021 के अगस्त में सुप्रीम कोर्ट की जज बनी थीं, इससे पहले वह गुजरात हाईकोर्ट में जज रही चुकीं हैं. जस्टिस सुधांशु धुलिया जस्टिस सुधांशु धुलिया 9 अगस्त 2025 को रिटायर होंगे. 9 मई 2022 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बतौर न्यायाधीश पद की शपथ ली थी. इससे पहले वह उत्तराखंड हाईकोर्ट में जज रह चुके हैं. साल 2021 से मई 2022 तक वह गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी रह चुके हैं. जस्टिस बीआर गवई जस्टिस बीआर गवई इसी साल 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो जाएंगे. रिटायरमेंट से पहले मई 2025 में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की जगह ले लेंगे. बीआर गवई उस पीठ का हिस्सा थे जिसने अधिवक्ता प्रशांत भूषण (2020) के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई की थी और न्यायिक गरिमा बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए 1 रुपये का प्रतीकात्मक जुर्माना लगाया था. इसके अलावा बीआर गवई ने पट्टाली मक्कल काची मामले (2022) में आरक्षण नीति पर महत्वपूर्ण फैसला दिया था. उन्होंने पुराने डेटा पर निर्भरता के कारण वन्नियार समुदाय के लिए तमिलनाडु सरकार के 10.5% आरक्षण के खिलाफ फैसला सुनाया था. जस्टिस बीआर गवई को न्याय से जुड़े फिलॉस्फी के जानकार के तौर पर माना जाता है. उन्होंने एक बार कहा था, कानून की प्रैक्टिस सीखने की एक शाश्वत प्रक्रिया है … Read more

बताया जाए कि आखिर कितने जजों के परिजनों को वरिष्ठ वकील बनाया गया है, दलील पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, मांग ली लिस्ट

नई दिल्ली जजों के रिश्तेदारों को ही अदालतों में सीनियर वकील का दर्जा दिया जाता है। ऐसा दावा करने वाला एक वकील को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है। अदालत ने गुरुवार को कहा कि ऐसा कहने से पहले यह भी तो बताया जाए कि आखिर कितने जजों के परिजनों को वरिष्ठ वकील बनाया गया है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने एडवोकेट मैथ्यूज जे. नेंदुमपारा और अन्य की अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। यह अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट में 70 वकीलों को सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिए जाने के खिलाफ दायर की गई थी। इस अर्जी में कहा गया है कि इन लोगों को दर्जा देने वाले फैसले को खारिज किया जाए। इसके अलावा जजों के परिजनों को ही सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिए जाने का भी आरोप लगाया गया। इस पर बेंच ने कहा, 'आखिर आप ऐसे कितने जजों के नाम बता सकते हैं, जिनके परिजनों को सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिया गया है।' इस पर याची वकील ने कहा कि मैंने अपने दावे के समर्थन में एक चार्ट पेश किया है। हालांकि अदालत ने वकील के दावों पर असहमति जताई और कहा कि यदि याचिका से इन चीजों को वापस नहीं हटाया गया तो फिर ऐक्शन भी लिया जाएगा। बेंच ने कहा, 'हम आपको यह छूट देते हैं कि याचिका में संशोधन कर लें। यदि आप ऐसा नहीं कर सके तो फिर हम ऐक्शन भी ले सकते हैं।' इस पर वकील ने कहा कि बार एसोसिएशन तो जजों से डरती है। इस पर भी बेंच ने सख्त ऐतराज जताया है। जस्टिस गवई ने वकील की दलील पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा, 'यह कानून के अनुसार चलने वाली अदालत है। मुंबई का आजाद मैदान नहीं है, जहां आप कुछ भी भाषण दे सकते हैं। आप यहां कानूनी आधार पर दलीलें दें, भाषण न करें।' इसके साथ ही अदालत ने वकील को टाइम दिया कि वह अपनी याचिका में संशोधन कर लें। यही नहीं बेंच ने कहा कि इस अर्जी में याची के तौर पर साइन करने वाले एक वकील तो अदालत की अवमानना के दोषी भी हैं। दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट में 70 वकीलों को सीनियर एडवोकेट बनाए जाने का फैसला शुरुआत से ही विवादों में है। यहां तक कि परमानेंट कमेटी के एक मेंबर ने तो यह कहते हुए इस्तीफा ही दे दिया कि उनकी सलाह के बिना ही फाइनल लिस्ट तैयार कर दी गई। इसके अलावा फाइनल लिस्ट के साथ छेड़छाड़ के आरोप भी लग रहे हैं। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 18

किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन खत्म कराने की कोशिश की जा रही है, भ्रम न फैलाएं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के मामले में पंजाब सरकार को फटकार लगाई है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सरकार के अधिकारी और कुछ किसान नेता मीडिया में यह गलत धारणा फैला रहे हैं कि किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन खत्म कराने की कोशिश की जा रही है। कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा है कि वह स्पष्ट करती है कि कोर्ट ने कभी भी डल्लेवाल का अनशन खत्म कराने का निर्देश नहीं दिया। कोर्ट ने कहा कि वह सिर्फ उनकी सेहत को लेकर चिंतित है और चाहती है कि उन्हें जल्द से जल्द स्वास्थ्य सहायता दी जाए। सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा है कि कोर्ट ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहती लेकिन ऐसा लगता है कि पंजाब सरकार के अधिकारी और कुछ किसान नेता जमीनी स्तर पर स्थिति को और जटिल बनाने के लिए मीडिया में गैरजिम्मेदाराना बयान दे रहे हैं। पीठ ने कहा, “हमें डल्लेवाल के प्रति कुछ किसान नेताओं की सद्भावना को परखने की जरूरत है।” पीठ ने कहा कि चूंकि पंजाब के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक इस मामले में डिजिटल माध्यम से पेश हो रहे हैं इसलिए उम्मीद है कि अदालत का संदेश निचले स्तर तक जाएगा। कोर्ट ने दोनों अधिकारियों से हलफनामा दाखिल करने को कहा जिसमें यह बताया गया हो कि 20 दिसंबर के उसके आदेश का कितना पालन किया गया है। इस आदेश में कोर्ट ने पंजाब सरकार को डल्लेवाल को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था। वहीं पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने स्थिति को जटिल बनाने के किसी भी कोशिश से इनकार किया है। उन्होंने कहा है कि डल्लेवाल को अपना अनशन खत्म किए बिना चिकित्सा सहायता लेने के लिए मनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए छह जनवरी की तारीख तय की है। कोर्ट ने डल्लेवाल की ओर से दायर एक नई याचिका पर केंद्र को नोटिस भी जारी किया है। डल्लेवाल की याचिका में केंद्र सरकार को कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के बाद 2021 में प्रदर्शनकारी किसानों से किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP की कानूनी गारंटी समेत विभिन्न वादों को पूरा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 36

क्या है न्यायसंगत गुजारा भत्ता? सुप्रीम कोर्ट ने तय किए नए पैमाने, पति-पत्नी दोनों के लिए राहत

नई दिल्ली ! यह बेहद दुखद है कि बेंगलुरू में 34 साल के अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी के साथ तलाक, गुजारा भत्ता और अन्य मामलों को लेकर चल रहे कानूनी विवाद के चलते अपनी जान दे दी. उन्होंने मरने से पहले अपनी पत्नी पर झूठे मुकदमे दर्ज कराने, पैसे ऐंठने और प्रताड़ित करने के आरोप लगाए. अतुल सुभाष ने अपने 24 पेज के सुसाइड नोट और 81 मिनट के वीडियो में आरोप लगाया कि वह पत्नी निकिता सिंघानिया को 40 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता के तौर पर दे रहे थे. फिर भी, पत्नी और उसके परिवार वाले सभी केस खत्म करने के लिए 3 करोड़ रुपये की रकम मांग रहे थे. इतना ही नहीं, बच्चे से मिलने के लिए 30 लाख रुपये की डिमांड की जा रही थी. अतुल सुभाष की आत्महत्या ने यह दिखाया है कि तलाक-गुजारा भत्ता के मामलों में कानूनी प्रक्रिया कितनी मुश्किल और तनावपूर्ण हो सकती है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में गुजारा भत्ता को लेकर अहम फैसला सुनाया है. यह मामला दुबई के एक बैंकर, उनकी पत्नी और बच्चे के बीच कानूनी विवाद से जुड़ा था. इस मामले में कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करते समय 8 बातों का ध्यान रखने के लिए कहा है. अब भारत की अदालतें गुजारा भत्ता के मामलों में इसी फैसले को आधार मानकर काम करेंगी. यह मामला दुबई के एक बैंक के सीईओ का है जिनकी साल 1998 में शादी हुई और 2004 में उनका पत्नी से विवाद हो गया. इसके बाद शुरू हुई कानूनी लड़ाई, जिसमें 20 साल तक यह बैंकर पारिवारिक अदालत से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक घूमता रहा. 2004 में बैंकर ने क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक की अर्जी दायर की. इसके बाद पत्नी ने भी गुजारा भत्ता पाने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत याचिका दायर कर दी. यह केस 20 साल से अदालतों में घूम रहा है. परिवारिक अदालत से शुरू हुआ ये मामला पहले हाईकोर्ट में पहुंचा और फिर सुप्रीम कोर्ट. मुख्य सवाल यही है कि पत्नी को कितना गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. 2015 में बैंकर ने सभी अदालती फैसलों का पालन करते हुए खुद से गुजारा भत्ता बढ़ा दिया. हालांकि, जब उनकी पत्नी ने और भी ज्यादा गुजारा भत्ता मांगना शुरू किया, तो उन्होंने विरोध किया. पति को यह मंजूर नहीं था कि यह रकम बार-बार बढ़ती रहे, खासकर जब उसकी अपनी भी आर्थिक स्थिति ठीक न हो और उसे अपने बच्चों की जिम्मेदारी भी निभानी हो. बैंकर के वकीलों के अनुसार, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 एक वयस्क बच्चे को गुजारा भत्ता देने की अनुमति नहीं देती है. मगर, पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 को चुनौती दी और अदालत से अपने और अपने वयस्क बेटे को स्थायी गुजारा भत्ता देने का समाधान मांगा. पत्नी का कहना था कि इस कानून के हिसाब से बच्चों के बड़े होने पर ज्यादा पैसे मिलने चाहिए. उनके बेटा हाल ही में ग्रेजुएट हुआ है और अभी भी उन पर निर्भर है, इसलिए और उन्हें भी ज्यादा पैसे चाहिए. बैंकर को इस बात पर सबसे ज्यादा एतराज था कि उसकी पत्नी हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 26 का गलत इस्तेमाल करके ज्यादा पैसे मांग रही है. हालांकि वो पहले के फैसलों को मानता रहा था और गुजारा भत्ता बढ़ाने को भी तैयार था. यह पारिवारिक विवाद जब कानून का सवाल बन गया, तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले ने केस के सभी तथ्यों को ध्यान से समझा. उन्होंने मौजूदा कानून को भी ध्यान में रखा. सुप्रीम कोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा (2021) और उसके बाद के फैसलों में दिए गए सिद्धांतों को दोहराया है. फिर कोर्ट ने कुछ बातें बताईं जिनके आधार पर यह तय किया जा सकता है कि गुजारा भत्ता देना जरूरी है या नहीं और अगर जरूरी है तो कितना. सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देश के अनुसार, गुजारा भत्ता तय करते समय पहले ये देखा जाना चाहिए कि पति-पत्नी दोनों का समाज में क्या स्थान है, उनकी पृष्ठभूमि क्या है, उनके परिवार का क्या रुतबा है, ये सारी बातें शामिल हैं. कई बार सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण भी गुजारा भत्ता की राशि प्रभावित हो सकती है. साथ ही दोनों कितना कमाते हैं और उनकी कितनी संपत्ति है. अगर पति आर्थिक रूप से मजबूत होता है, तो उसे ज्यादा गुजारा भत्ता देने के लिए कहा जा सकता है. अगर पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं और उनकी आय लगभग बराबर है, तो गुजारा भत्ता की राशि कम हो सकती है या फिर शायद किसी को गुजारा भत्ता देने की जरूरत ही नहीं पड़े. लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह सिर्फ एक कारक है. गुजारा भत्ता तय करते समय अदालत बाकी 7 कारकों पर भी विचार करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करते समय पति-पत्नी के जीवन स्तर को भी एक अहम कारक बताया है. गुजारा भत्ता तय करते समय अदालत यह भी देखेगी कि पति-पत्नी का समाज में क्या रुतबा है और वे कैसा जीवन जीते थे. उनके पास कितने मकान और गाड़ियां हैं, उनकी कीमत क्या है? उनका घर कितना बड़ा है, उसमें कितने एसी और स्विमिंग पूल जैसी सुविधाएं हैं? उनके घर में कितने नौकर-चाकर काम करते हैं? वे कितनी बार छुट्टियां मनाने जाते थे, भारत में या विदेश में? अगर पति-पत्नी अमीर थे और ऐशो-आराम की जिंदगी जीते थे, तो पत्नी को ज्यादा गुजारा भत्ता मिल सकता है ताकि वो भी वैसी ही जिंदगी जी सके. अदालत यह भी देखेगी कि पत्नी की उम्र क्या है, उसने कितनी पढ़ाई की है और क्या वो खुद कमा सकती है. अगर वह बेरोजगार है, तो उसे ज्यादा गुजारा भत्ता मिल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुजारा भत्ता तय करते समय पत्नी और बच्चों की जरूरतों का ध्यान रखना जरूरी है. पत्नी को शादी के दौरान जैसा जीवन जी रही थी, वैसा ही जीवन जीने का हक है, लेकिन उसकी मांगें वाजिब होनी चाहिए. पत्नी और बच्चों की बुनियादी जरूरतें पूरी होनी चाहिए, इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन अदालत यह भी देखेगी कि पत्नी की मांगें … Read more

दिल्ली एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और हरियाणा में भी पटाखों की बिक्री पर लगाया बैन

नई दिल्ली दिल्ली एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एनसीआर में आने वाले यूपी और हरियाणा में भी पटाखों की बिक्री पर बैन लगाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अगले आदेश तक दोनों राज्यों में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। दरअसल गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के साथ-साथ अन्य शहरों में भी बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुनवाई हुई। इस दौरान दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजधानी में पूरे साल पटाखों के स्टॉक और बिक्री पर रोक लगा दी गई है। इस पर कोर्ट ने कहा कि इसका असर तभी होगा, जब NCR के दूसरे शहरों में भी ऐसी ही रोक हो। इसलिए यूपी और हरियाणा भी ऐसा करें। राजस्थान ने भी लगाया है प्रतिबंध: कोर्ट लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा, 'हमारा मानना ​​है कि यह प्रतिबंध तभी प्रभावी होगा, जब एनसीआर क्षेत्र का हिस्सा बनने वाले अन्य राज्य भी इसी तरह के उपाय लागू करेंगे। यहां तक ​​कि राजस्थान राज्य ने भी राजस्थान के उस हिस्से में इसी तरह का प्रतिबंध लगाया है, जो एनसीआर क्षेत्रों में आता है। फिलहाल हम उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्यों को उसी तरह का प्रतिबंध लगाने का निर्देश देते हैं, जैसा कि दिल्ली राज्य ने 19 दिसंबर 2024 के आदेश के तहत लगाया है।' जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दिल्ली वायु प्रदूषण मामले की सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में प्रदूषण से निपटने के उपायों की समीक्षा की। सुनवाई के दौराम पटाखों पर साल भर के प्रतिबंध, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया गया। राज्यों को टीमें गठित करने का निर्देश इसके अलावा प्रदूषण से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के अंतर्गत आने वाले राज्यों को आदेश दिया कि वे सभी ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP-4) के तहत प्रदूषण से बचने वाले उपायों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि इसके क्रियान्वयन के लिए विभिन्न अधिकारियों की टीमें गठित की जानी चाहिए। इन राज्यों में एनसीआर क्षेत्र में आने वाले यूपी और हरियाणा शामिल हैं। पीठ ने निर्देश देते हुए कहा कि हम एनसीआर राज्यों को GARP- IV उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए पुलिस, राजस्व अधिकारियों की टीमों का गठन करने का निर्देश देते हैं। हम यह कहते हैं कि इस टीम में बनाए गए सदस्य इस न्यायालय के अधिकारी के रूप में काम करेंगे। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 23

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नशे की लत देश के युवाओं की चमक को ही खत्म करने वाली चीज है, उनका पूरा तेज इससे छिन जाता है

नई दिल्ली नशे में डूबने का मतलब कूल होना नहीं है और इससे बचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक केस की सुनवाई करते हुए देश के युवाओं को यह नसीहत दी। अदालत ने कहा कि दुखद है कि इन दिनों नशा करने या उसकी लत का शिकार होने को कूल होने से जोड़ दिया गया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह ने ड्रग तस्करी के मामले की सुनवाई करते हुए यह बात कही। इस केस की जांच एनआईए कर रही है, जिसमें अंकुश विपिन कपूर पर आरोप है कि वह ड्रग तस्करी का नेटवर्क चलाता था। उसने पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते बड़े पैमाने पर हीरोइन की तस्करी भारत में कराई थी। जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नशे की लत का सामाजिक आर्थिक तौर पर और मनोवैज्ञानिक रूप से युवाओं पर बुरा असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह देश के युवाओं की चमक को ही खत्म करने वाली चीज है। उनका पूरा तेज इससे छिन जाता है। अदालत ने कहा कि नशे की लत से युवाओं को बचाने के लिए पैरेंट्स, समाज और सरकारी एजेंसियों को प्रयास करने होंगे। हमें कुछ गाइडलाइंस भी तय करनी चाहिए, जिसके अनुसार ऐक्शन लिया जाए और युवाओं को इससे बचाया जाए। अदालत ने कहा कि यह चिंता की बात है कि पूरे भारत में ड्रग्स का रैकेट चल रहा है। इसका प्रभाव सभी समाज, आयु और धर्म के लोगों में दिख रहा है। अदालत ने कहा कि ड्रग्स तस्करी से पैदा हुई रकम का इस्तेमाल देश के दुश्मन हिंसा और आतंकवाद फैलाने में भी करते हैं। जजमेंट में कहा गया कि आज की युवा पीढ़ी को लेकर कहा जाता है कि वे संगत में, पढ़ाई के तनाव में या फिर परिवेश के चलते ऐसा किया जाता है। अदालत ने कहा कि ऐसा करने वाले लोग अकसर बच निकलते हैं और यह चिंता की बात है। बेंच ने कहा कि यह पैरेंट्स की भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को सुरक्षित माहौल में रखें। उन्हें भावनात्मक कवच प्रदान करें। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि बच्चे यदि भावनात्मक रूप से परिवार से जुड़े रहते हैं और उस परिवेश का प्रभाव उन पर रहे तो उनके नशे की लत का शिकार होने की संभावना कम होती है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 12

जस्टिस शेखर यादव ने कहा था कि देश बहुसंख्यक के हिसाब से चलेगा, इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान

नई दिल्ली इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के बयान का सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जवाब मांगा है। दरअसल, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव ने कहा था कि देश बहुसंख्यक के हिसाब से चलेगा। एक आधिकारिक बयान में कहा गया, "सुप्रीम कोर्ट ने समाचार पत्रों में छापे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश शेखर कुमार यादव के भाषण का संज्ञान लिया है। उच्च न्यायालय से ब्योरा मंगवाया गया है। मामला विचाराधीन है। वीएचपी के कार्यक्रम में दिया था भाषण आठ दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट के लाइब्रेरी हॉल में विश्व हिंदू परिषद के विधि प्रकोष्ठ ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमें उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता का मुख्य उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है। एक दिन बाद न्यायाधीश एक वीडियो सामने आया। शाहबानो केस का किया जिक्र जस्टिस शेखर यादव ने कहा कि जब देश और संविधान एक हैं तो कानून एक क्यों नहीं है? अपने भाषण में जस्टिस यादव ने शाहबानो केस का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि तीन तलाक गलत है। मगर उस समय की सरकार को झुकना पड़ा। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 14