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भोपाल
मध्यप्रदेश को प्राकृतिक खेती में अग्रणी राज्य बनाने के लिए उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केट कनेक्टिविटी को बढ़ाया जाना चाहिए। महिला किसानों और स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देकर कम्युनिटी मॉडल अपनाए जाना चाहिए। प्राकृतिक खेती के लिए मानकों और प्रमाणन की प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए। उक्त विचार विशेषज्ञों ने आज यहां मध्यप्रदेश राज्य नीति आयोग द्वारा "जलवायु सहनशीलता और सतत् कृषि के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा: मार्ग, चुनौतियां और नीति समर्थन" विषय पर आयोजित संवाद में व्यक्त किए। संवाद में कृषि, बागवानी और सतत विकास के क्षेत्र में कार्यरत विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों, महिला किसानों, स्वयंसेवी संगठनों, और अन्य हितधारकों ने भाग लिया।

सीईओ, राज्य नीति आयोग श्री ऋषि गर्ग ने प्राकृतिक खेती के संवर्धन के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर चर्चा करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती को अपनाने में किसानों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना आवश्यक है। आंध्रप्रदेश के उप निदेशक हॉर्टिकल्चर श्रीनिवासुलु ने सामुदायिक प्राकृतिक खेती के अनुभव साझा करते हुए कहा कि कम लागत और स्थानीय संसाधनों का उपयोग प्राकृतिक खेती को किसानों के लिए आकर्षक बनाता है।

अतिरिक्त सचिव बागवानी एवं खाद्य प्रसंस्करण श्रीमती प्रीति मैथिल ने बताया कि प्राकृतिक खेती के उत्पाद उपभोक्ताओं में लोकप्रिय हो रहे हैं, लेकिन इसे व्यावसायिक रूप से टिकाऊ बनाने के लिए बेहतर नीति समर्थन और बाजार संपर्क की आवश्यकता है। श्री जी. प्रकाश राव ने प्राकृतिक खेती के वैज्ञानिक आधार, जैव विविधता में सुधार और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के उपायों पर चर्चा की।

पद्मश्री डॉ. सुभाष पालेकर ने जैविक और प्राकृतिक खेती के बीच के अंतर को स्पष्ट किया और प्राकृतिक खेती को अपनाने की प्रक्रिया को सरल बनाने के सुझाव दिए। उन्होंने "शून्य लागत प्राकृतिक खेती" की तकनीकों पर जोर दिया। प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास श्रीमती दीपाली रस्तोगी ने विशेषज्ञों से संवाद किया।

 

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